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भाषण : बम्बईकी सार्वजनिक सभामें


जितनी मैनचेस्टरमें बनी बढ़िया मलमल (कैलिको) या जापानमें बने मालमें है, तबतक हमें स्वराज्य नहीं मिल सकता।

हमारा कर्तव्य बिलकुल स्पष्ट है — हमें कांग्रेसमें शामिल होना चाहिए; हमें तिलक स्वराज्य कोषके लिए एक करोड़ रुपया इकट्ठा करना चाहिए और देशमें बीस लाख चरखे चलवा देने चाहिए। यदि भारत इतना कर सके तो निश्चय ही एक वर्षमें स्वराज्य मिल सकता है। यदि हम इतना कर डालें तो निस्सन्देह स्वराज्य अपने आप चला आयेगा । मद्रास और बंगालमें बड़े प्रतिष्ठित लोग भी खद्दर पहनते हैं। तब बम्बईके लोग ऐसा क्यों नहीं कर सकते ?

मुझे महिलाओंके सहयोगकी और उनके आशीर्वादकी भी आवश्यकता है। किन्तु उन्हें पहले इसके योग्य बनना चाहिए। जबतक वे स्वदेशी कपड़े पहनकर और विदेशी कपड़े त्यागकर स्वयं पवित्र नहीं हो जातीं तबतक वे मुझे आशीर्वाद नहीं दे सकतीं । वे जबतक स्वयं स्वदेशी कपड़े नहीं पहनने लगतीं, तबतक मुझे आशीर्वाद कैसे दे सकतीं हैं ? महिलाओंसे मेरा अनुरोध है कि वे अपने सम्मुख सीताजीका आदर्श रखें; वे सीताकी तरह कष्ट सहन करें और सीताकी तरह सरल और शुद्ध सादगीका जीवन अपनायें। भारतको केवल तभी स्वराज्य मिल सकता है जब वे केवल देशका बना कपड़ा पहनें। और देशके कार्य में रत कार्यकर्ताओंको अपना आशीर्वाद और सहयोग प्रदान करें। उस अवस्थामें इस देशमें धर्म राज्य स्थापित होगा। हिन्दुओं और मुसलमानोंको स्वराज्यके संघर्षके लिए दूध और पानीकी तरह एक कर देना कांग्रेसका उद्देश्य है। बंगाल और उड़ीसामें स्त्रियोंने तिलक स्वराज्य कोषमें दिल खोलकर चन्दा दिया है। मैं अपनी पारसी बहनोंते अनुरोध करता हूँ कि वे स्वराज्यके लिए मुक्तहस्तसे दान दें। में सब बहनोंसे इस कोषमें अपना योगदान देनेकी विनती करता हूँ ।

अन्त में गांधीजीने कहा: मेरी ईश्वरसे प्रार्थना है कि हिन्दू, मुसलमान, पारसी और यहूदी सब मिलकर एक हो जायें और अपनी शक्तिभर देशका हित साधन करते हुए अपने कर्तव्यका पालन करें।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, ११-४-१९२१




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