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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इससे भी ज्यादा महत्वकी बात है चरखा; स्वराज्यका मिलना इसीपर निर्भर करता है। स्वराज्य प्राप्तिका आधार केवल चरखा है। यह हमारा गोला-बारूद है, जिसकी हमें स्वराज्यकी लड़ाईमें जरूरत है। आपको विदेशी माल व्यवहारमें लाना बन्द कर देना है और इस दिशामें पहला कदम स्वदेशी कपड़ेका इस्तेमाल है। आपको चाहिए कि आप विदेशी कपड़ा पहनना एक लज्जाजनक बात समझें। आप यह भी सोचें कि देशमें बना कपड़ा पहनना बहुत अच्छी बात । आपका यह काम आध्यात्मिकता- से भरा हुआ होगा और इससे भारतका हित होगा। मैं इस महान कार्यके लिए पुरुषों और स्त्रियों, अमीरों और गरीबों, बूढ़ों और युवकों — सभीकी शक्ति उपलब्ध करना चाहता हूँ। मुझे स्वराज्यकी लड़ाईमें गरीबसे-गरीब आदमीकी जरूरत है। यदि भारतीय यह सोचते हों कि वे कारखाने खड़े करके विदेशी मालका त्यागकर सकेंगे तो मेरा खयाल यह है कि ऐसा करना सम्भव नहीं है, क्योंकि हम एक सालमें विदेशोंसे इतनी मशीनें कैसे मँगा सकते हैं ? इसके अलावा, हमें इन मशीनोंकी खरीदीके लिए विदेशों में बहुत बड़ी रकम भेज देनी पड़ेगी। जब देशमें कारखानोंके लिए मशीनें बनने लगेंगी तब आप चाहे जितने कारखाने खड़े कर लें; केवल उस अवस्थामें मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी; लेकिन जबतक ऐसा नहीं हो पाता तबतक मेरे खयालसे नये कारखाने खड़े करनेसे कोई लाभ नहीं होगा। कांग्रेस यह चाहती है कि जूनसे पहले ही देशमें २० लाख चरखे चलने लगे। मैं चाहता हूँ कि चरखा देशके प्रत्येक घरमें पहुँच जाये ।

महात्मा गांधीने बम्बईके व्यापारियोंसे पूछा: क्या आप लोगोंका विदेशोंमें बना हुआ माल मँगाना और इस प्रकार देशको गरीब बनाना तथा भारतीयोंको दास बनाए रखना उचित है ? क्या इसकी अपेक्षा आपका गरीब रहना ज्यादा अच्छा नहीं है ? हमें स्वराज्य तभी मिल सकता है जब आप विदेशी माल मँगाना बन्द करें। वकील लोग अदालतोंमें जाते रहें या छात्र स्कूलों और कालेजोंमें जाते रहें इससे कोई बड़ी हानि नहीं। लेकिन देशमें विदेशी माल न आने पाये, यह अत्यन्त आवश्यक है। हमें खद्दर पहनना चाहिए। केवल स्वदेशी कपड़ा पहनना हमारा धर्म है। देशमें बने हुए कपड़ोंकी जगह विदेशोंमें बना हुआ कपड़ा पहनना देशके प्रति अपराध है। मैं उड़ीसा और आन्ध्रसे आ रहा हूँ। मैंने वहाँ जो-कुछ देखा, उससे मुझे यह विश्वास हो गया है कि बम्बईके लोग बहुत पीछे रह गये हैं और उनका इस पापमें सबसे बड़ा भाग है। इस मामलेमें गुजराती समाज सबसे बड़ा पापी है। भारतमें विदेशी कपड़ा मँगानेवाले लोग गुजराती व्यापारी ही हैं। भारतीय लोग बारीक कपड़ा पहननेके आदी हो गये हैं। यदि बम्बईके लोग इन विलासिताकी चीजोंको नहीं छोड़ सकते तो मेरी समझमें दूसरी जगहोंके लोगोंसे उनका छुड़वाना सम्भव नहीं है। स्वराज्यकी खातिर, खिलाफत और पंजाबके अन्यायका निराकरण करानेकी खातिर, हमें विदेशोंमें बना माल त्यागना होगा। जबतक भारतीय यह अनुभव नहीं करते कि खद्दरमें उतनी हो सुन्दरता है