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भाषण: विद्यार्थियोंकी सभा, इलाहाबाद में

विलिंग्डन[१] विलायतसे आनेके बाद बम्बईमें कुछ समय व्यतीत करनेके पश्चात् अपना अनुभव सुनाते हुए कहते थे कि भारतमें आकर मैंने किसी हिन्दू-मुसलमानको ‘ना’ कहने की हिम्मत करते नहीं देखा। यह आक्षेप अब भी सही है। हमारे दिल में ‘नहीं’ होनेपर भी हम ‘नहीं‘ नहीं कह सकते। सामनेवालेका मुँह देखकर उसे ‘हाँ’ चाहिए या ‘ना’ यह सोचते हैं और तब तदनुसार बात करते हैं। यहाँ पण्डितजीके घर किसी तीन-चार वर्षकी लड़कीसे भी में उसकी इच्छाके विरुद्ध कुछ नहीं करा सकता। मैं उसे कहता हूँ कि तू मेरी गोद में बैठ, तो वह कहती है, ‘नहीं’। उससे कहता हूँ कि ‘तु खादीके कपड़े पहनेगी?’ तो कहती है ‘नहीं’। हममें इस बच्चीकी-सी ताकत भी नहीं है। एक महापुरुषने कहा है कि हमें स्वर्ग में जाना हो तो बालक-जैसा बनना होगा। बालक-जैसे बननेका अर्थ यह है कि बालककी-सी निर्दोषता और हिम्मत चाहिए। एडविन अर्नाल्डने[२] बालककी निर्दोषताका बढ़िया ढंगसे वर्णन किया है। बच्चा बिच्छूको पकड़ लेता है, साँपको भी पकड़ लेता है, आगमें हाथ डाल देता है, उसे डरका जरा भी भान नहीं होता। आप भी ऐसी ही निर्भयता पैदा करें। आपके मनमें ईश्वरका भरोसा नहीं है, इसलिए आप डरके वशमें होते हैं।

मुझे अक्सर खयाल आता है कि या तो जल्दी से जल्दी भारतसे भाग निकलूं या उसे जल्दी से जल्दी स्वतन्त्र करूँ? स्वतन्त्रताका इतना ही अर्थ है कि हम किसीसे भी न डरकर जो हमारे दिलमें हो, वही कह सकें, वही कर सकें। जो लड़का करोड़ों मनुष्यों के सामने सीधा खड़ा रहकर अपनी बात कह सके, वह सच्चा साहसी है। इसलिए आपके लिए पहला पाठ तो 'ना' कहना सीखना है। आप प्रतिज्ञा लें ही नहीं, यह बेहतर है; प्रतिज्ञा लेकर तोड़ना, मैं कहूँगा कि, एक बड़ा अपराध करने जैसा है। आपने ऊँची शिक्षा पाई हो, बड़ी डिग्री ली हो, फिर भी यदि आप बिना आगा-पीछा किये प्रतिज्ञा तोड़ दें, तो मैं जरूर कहूँगा कि आप जमनामें जाकर डूब क्यों नहीं मरते? आप शायद यह सफाई दें कि आपके दिलने एक बार कुछ कहा, इसलिए आपने वैसा किया, उसने फिर दूसरी बात कही तो आपने दूसरा व्यवहार किया; परन्तु इसका जवाब यह है कि तब आपको प्रतिज्ञा नहीं लेनी चाहिए। शास्त्रों में कहा है कि प्रतिज्ञा लो तो उसके लिए मरो। इसे साबित करनेवाले थे हमारे हरिइचन्द्र और रोहितास; वे अपना वचन निभाने के लिए भंगीके यहाँ सेवक बनकर रहे; हम उन धर्मवीरोंकी सन्तान हैं, इसे आप कैसे भूल जायेंगे? हाँ, व्यभिचार करनेकी, झूठ बोलने की प्रतिज्ञा ली हो तो वह जरूर तोड़ी जा सकती है, क्योंकि इसे तोड़कर मनुष्य अपनी उन्नति करता है। त्याग करनेकी प्रतिज्ञा कभी बदली नहीं जा सकती। हिन्दूकी गोमाँस न खानेकी अथवा मुसलमानकी शराब न पीने और सूअरका माँस न खानेकी प्रतिज्ञा है। यदि वह बीमार हो, मरणासन्न हो और डाक्टर आग्रह करें

  1. १८६६-१९४१; बम्बई (१९१३-१९) और मद्रास (१९१९-२४) के गवर्नर और भारतके वाइसराय (१९३१-३६)।
  2. एडविन अर्नाल्ड (१८३२-१९०४); संस्कृत साहित्यके अध्येता, अंग्रेज कवि। उनका भगवद्-गीताका अंग्रेजी पद्य-अनुवाद सॉंग सिलेशियल और बुद्ध-चरित्र सम्बन्धी काव्य ग्रन्थ लाइट ऑफ एशिया अंग्रेजी साहित्यमें बहुत प्रसिद्ध है।