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३७. पत्र: देवदास गांधीको

बुधवार [नवम्बर १९२०][१]


चि० देवदास,

मुझे ऐसा हरगिज नहीं लगा कि तुम्हारा पत्र लम्बा है। बाके[२] विषय में जो लिखा सो समझ गया हूँ। मुझे तो विश्वास है कि मेरा विचार गैरवाजिब बिलकुल नहीं था। एक क्षणके लिए भी भावनाओंमें बह जाना ठीक नहीं है। लेकिन इस मामले में अधिक विचार करनेका समय ही कहाँ है?

तुम्हें दूधकी मात्रा बढ़ानी होगी। भात खा सकते हो लेकिन कम। वह पुष्टिकारक तो है ही नहीं। अब रही फलोंकी बात। सो अगर अंगूर महँगे हों तो उनके स्थानपर किशमिश खाया करो। अंगूर या किशमिश तथा संतरे――बस इतने से काम चल जायेगा। अगर तुम्हें पथरीका रोग नहीं है तो अन्य कोई बात होगी। इसे सावधानी के साथ मिटानेका प्रयास किये बिना काम नहीं चलेगा।

ऐसा लगता है कि फिलहाल हम लोग गिरफ्तार नहीं किये जायेंगे। यहाँ भी एक राष्ट्रीय विद्यालय स्थापित किया जानेवाला है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ७१७८) की फोटो-नकलसे।

३८. पत्र: देवदास गांधीको

[नवम्बर १९२०][३]


चि० देवदास,

इस लिफाफेमें तुम्हें दो पत्र मिलेंगे। एक मैंन मोटरमें बैठे हुए लिखा था। लिफाफेको फाड़कर उस पत्रको भी इसीके साथ भेज रहा हूँ। अपने शरीरको ठीक

  1. सरकार गांधीजीको गिरफ्तार करनेवाली नहीं है, यह बात नवम्बर १९२० के प्रथम सप्ताह में ही मालूम हो गई थी। जब गांधीजी नवम्बरके अन्तिम सप्ताह में उत्तर भारत में थे तब उन्हें अपने गिरफ्तार न होनेके बारेमें कुछ ज्यादा पक्की खबर मिली होगी। २४ नवम्बर, १९२० को दिल्ली में ‘न्यू प्रजाकीय इस्लामिक मदरसा’ और ३० नवम्बरको इलाहाबाद में ‘तिलक विद्यालय’ का उन्होंने उद्घाटन किया था। इसलिए इस अनुच्छेदका अन्तिम वाक्य इन्हीं दो संस्थाओं में से एकके सम्बन्धमें है। इस सबसे पता चलता है कि यह पत्र सम्भवतः नवम्बरके अन्तिम सप्ताह में लिखा गया होगा।
  2. कस्तूरबा।
  3. पत्रके पाठसे लगता है कि पिछले शीर्षकके तुरन्त बाद ही, जिसे उन्होंने मोटरमें बैठे-बैठे लिखा था, यह पत्र लिखा गया होगा।