पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

छोटे बच्चेकी ओर संकेत करके कहा—"हाँ (मेरा 'बॉय'—लड़का— है)।" इसपर दूसरे गोरेने कहा—"नहीं, नहीं, मेरा मतलब उससे नहीं है। मैं तो उस कुलीके बारेमें पूछ रहा हूँ जो, मुआ, कोनेमें बैठा है।" यह छँटी हुई भाषा बोलनेवाला भलामानस एक 'शंटर', यानी रेलवे-कर्मचारी था। डिब्बे में बैठे गोरे व्यक्तिने कहा —"ओह! उसकी परवाह न कीजिए। उसे रहने दीजिए।" तब बाहरवाले गोरे ने कहा—"मैं कुलीको गोरे लोगोंके साथ डिब्बेमें नहीं बैठने दूंगा।" उसने मुझसे कहा—"सामी, बाहर आ! "मैंने कहा—"क्यों भला? न्यूकैसलमें तो मुझे दूसरे डिब्बेसे हटाकर यहाँ बैठाया गया था।" गोरेने कहा—"हाँ हाँ, तुझको निकलना होगा।" और वह डिब्बे में घुसनेको हुआ। मैंने सोचा कि मेरी वही गति होगी, जो न्यूकैसलमें हुई थी, इसलिए मैं बाहर निकल गया। गोरेने दूसरे दर्जेका दूसरा डिब्बा दिखाया। मैं उसमें चला गया। कुछ देरतक वह डिब्बा खाली रहा, मगर जब गाड़ी छूटनेवाली थी, एक गोरा उसमें आया। बादमें एक दूसरा गोरा-वही कर्मचारी आया और उसने कहा—"अगर आपको उस गंधेले कुलोके साथ सफर करना पसन्द न हो तो मैं आपके लिए दूसरा डिब्बा देख दूँ।" ('नेटाल एडवर्टाइज़र' : बुधवार, २२ नवम्बर, १८९३)। आपने देखा कि मैरित्सबर्गमें यद्यपि गोरे सहयात्रीने कोई आपत्ति नहीं की थी, फिर भी रेलवे-कर्मचारीने भारतीय यात्रीके साथ दुर्व्यवहार किया। अगर यह पाशविक व्यवहार नहीं है तो क्या है, मैं जानना चाहूँगा। और इस तरहकी सन्तापजनक घटनाएँ अकसर होती रहती हैं।

मुकदमे के दौरान मालूम हुआ था कि सफाई-पक्षके एक गवाहको सिखायापढ़ाया गया था। वह उपर्युक्त रेलवे-कर्मचारियोंमें से था। अदालतके एक प्रश्नके उत्तरमें कि, क्या भारतीय यात्रियोंके साथ आदरका व्यवहार किया जाता है, उसने कहा—"हाँ"। कहते हैं, इसपर मकदमा सूननेवाले मजिस्ट्रेटने उससे कहा—"तो फिर, तुम्हारा मत मेरे मतसे भिन्न है। विचित्र बात है कि जो लोग रेलवेसे सम्बन्ध नहीं रखते, वे तुमसे ज्यादा देख लेते हैं।"

इस मामलेपर डर्बनके एक यूरोपीय दैनिक पत्र 'नेटाल एडवर्टाइज़र' ने निम्नलिखित विचार व्यक्त किये थे :

गवाहीसे निर्विवाद है कि उस अरबके साथ बुरा व्यवहार किया गया था। और यह देखते हुए कि इस तरहके भारतीयोंको दूसरे दर्जे के टिकट दिये जाते हैं, वादीको नाहक परेशान और अपमानित नहीं किया जाना चाहिए था।...यूरोपीय और गैर-यूरोपीय यात्रियोंके बीच संघर्षके खतरेको ज्यादासेज्यादा घटा देनेके कोई निश्चित उपाय किये जाने चाहिए। उन उपायोंका प्रयोग काले या गोरे, किसी भी व्यक्तिको सन्तापजनक न हो।

इसी मुकदमेके बारेमें 'नेटाल मर्क्युरी' ने कहा है :