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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

बिक जाती हैं। इसमें आश्चर्यकी क्या बात है? फिर यूरोपीय व्यापारी कभी जरा भी फेरीके लिए निकलना पसन्द नहीं करते। भारतीयोंकी व्यापार-सम्बन्धी योग्यता और सामान्य रूपसे कहें तो उनकी ईमानदारीका भी सबसे बड़ा प्रमाण तो शायद यही है कि ये बड़ी-बड़ी पेढ़ियाँ उनको यह सारा माल उधार दे देती हैं। वास्तवमें उनका अधिकांश व्यापार इन घूमनेवाले भारतीय व्यापारियोंकी मार्फत होता है। यह कोई छिपी हुई बात भी नहीं है कि भारतीयोंके प्रति यह विरोध केवल कुछ ही भागका है। यूरोपीय समाजके एक बड़े हिस्सेका प्रतिनिधित्व वह नहीं करता।

[प्र॰] संक्षेपमें, नेटालके भारतीय निवासियोंपर लगी कानूनी और अन्य बन्दिशें कौन-कौन-सी हैं?

[उ॰] सबसे पहले तो 'कर्फ्यू' का कानून है, जो तमाम रंगीन जातियोंपर लागू है। इसके अनुसार कोई रंगीन जातिका आदमी—अगर वह शर्तबन्द मजदूर है तो—अपने मालिककी लिखी इजाजत साथ लिये बगैर रातको नौ बजे के बाद अपने मकानसे बाहर नहीं निकल सकता। अगर वह ऐसा मजदूर नहीं है तो उसे इसके लिए कोई माकूल कारण बताना पड़ता है। इसमें शिकायतका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि पुलिसके हाथोंमें लोगोंको तंग करने के लिए यह एक बहुत बड़ा हथियार बन सकता है। अच्छे कपड़े पहने हुए प्रतिष्ठित भारतीयोंको भी कभी-कभी पुलिसके हाथों अपमानित होना पड़ता है। उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। थानेपर ले जाया जाता है। रात-रातभर बन्द रखा जाता है और दूसरे दिन सुबह मजिस्ट्रेटके सामने पेश किया जाता है और निर्दोष साबित होनेपर, खेदका एक शब्द भी कहे बगैर, घर चले जानेके लिए कह दिया जाता है। ऐसी घटनाएँ कम नहीं होती। दूसरी बात मताधिकार छीने जानेकी है, जिसका उल्लेख आपने जो लेख प्रकाशित किया है, उसमें आ चुका है। वास्तविकता यह है कि गोरे उपनिवेशवासी नहीं चाहते कि भारतीय दक्षिण आफ्रिकी राष्ट्रका अंग बन जायें। इसीलिए उनका मताधिकार छीन लिया गया है। वहाँ एक नीच नौकरके रूपमें भारतीयको बरदाश्त किया जा सकता है, परन्तु नागरिकके रूपमें कभी नहीं।

[प्र॰] एक पराये देशमें राजनीतिक अधिकारके उपभोगके बारेमें भारतीयोंका रुख क्या रहा है?

[उ॰] केवल यही कि जो आदमी उस देशके निवासी नहीं हैं और फिर भी जिन अधिकारोंको पानेका दावा करते हैं और स्वतंत्रतापूर्वक उनका उपभोग भी करते हैं, वही भारतीयोंको भी मिलें। राजनीतिक दृष्टि से कहें तो भारतीय अपने लिए मताधिकार पानेके इच्छुक नहीं हैं। वे तो मताधिकार छीने जानेके अपमानसे रुष्ट होने के कारण चाहते है कि वह फिरसे उन्हें मिल जाये। दूसरे, सारे भारतीयोंको एक वर्गमें डाल दिया गया है और अधिक योग्य वर्गके भारतीयोंको उचित मान्यता नहीं दी जा रही है। ये बातें भारी अन्यायके रूपमें हमें शूलकी तरह चुभ रही हैं। हम यह भी सुझाते आ रहे हैं कि मताधिकारमें जायदाद-सम्बन्धी शर्तको हटाकर कोई