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तार : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिकी

ऐसे कथनसे आन्दोलन बढ़ा, लोग भड़के। सच यह है—यात्री सिर्फ ६००, नेटाल आनेवाले, २०० से ज्यादा नहीं, सो भी व्यापारी, उनके सहायक, रिश्तेदार, पुराने निवासियों की पत्नियाँ, बच्चे। उपनिवेशपर छा जाने की कोई योजना नहीं। छपाईकी कोई मशीन नहीं। सरकार द्वारा नियुक्त संगरोधन-समितिके एक सदस्य ने भीड़ की छठी टुकड़ी का नेतृत्व किया। यात्रियों को चेतावनी दी गई कि] डर्बन के हजारों लोगों का विरोध न सहना हो तो भारत लौट जाओ। 'कूरलैंड' के यात्री गांधी को मुँहपर डामर पोत देने, खाल उधेड़ देने, पत्थरोंसे मार डालने की धमकी। जहाज के एजेंटों ने संगरोध लगाने की अवैधता बताकर सरकार से यात्रियों को राहत और संरक्षण देने का अनुरोध किया। तेरह तारीख को प्रदर्शनके बादतक एजेंटों के पत्र की उपेक्षा की गई। सरकारी रेलवेके कर्मचारियों, स्वयंसेवकों, ३०० लट्ठबन्द काफिरों-सहित हजारों लोग "जरूरत पड़े तो जबरदस्ती यात्रियों को उतरने से रोकने के लिए" जहाज-घाटपर इकट्ठे हुए थे। रक्षामन्त्री जहाजको घाटपर लाये। उन्होंने भीड़ के सामने भाषण किया। भीड़ बरखास्त हो गई। यात्रियोंको सुरक्षा का आश्वासन दिया गया। कुछ तीसरे पहर उतर गये, शेष दूसरे दिन उतरे। सरकारने गांधीको गुपचुप रातको उतार लेनेका प्रस्ताव किया। वे तीसरे पहर देरसे उतरे। साथमें एडवोकेट लॉटन थे। भीड़ ने हाथापाई की, प्रहार किया। पुलिस ने बचाया। अखबार प्रदर्शनकी निन्दा कर रहे हैं। मंजूर करते हैं कि आन्दोलनकारी झूठे 'बयानोंपर चले। गांधी को सही बताते हैं। कुछ पत्र सरकार और आन्दोलनकारियों में गठबन्धनका शक करते हैं। यात्रियोंको भारी हानि पहुँची है। सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही। संगरोधनके दिनों भारतीय संगरोधन सहायता-निधिसे बिस्तर, भोजन आदि दिया गया। सरकार भारतीय विरुद्ध कानून बनानेके लिए ब्रिटिश सरकारके साथ लिखा-पढ़ी कर रही है। कृपया चौकसी रखिए।

अंग्रेजीकी दफ्तरी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ १८८३) से।