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पत्र :'नेटाल मर्क्युरी' को

जिनके पास २५ पौंडकी रकम थी, ट्रान्सवालमें अपने-अपने गन्तव्य स्थानको जाने दिया था। अब कहा जा रहा है कि पहले भले ही कुछ लोग चले गये हों, परन्तु अब सीमाके कर्मचारी किसी भी हालतमें भारतीयोंको सीमा-पार नहीं जाने देंगे। मेरा निवेदन है कि क्या आप सम्राज्ञीके भारतीय प्रजाजनोंकी ओरसे निश्चित पता लगाने की कृपा करेंगे कि उन्हें किन परिस्थितियोंमें सीमा पार करने दी जायेगी?

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे

प्रिटोरिया आर्काइव्ज़ और कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स, साउथ आफ्रिका, जनरल, १८९७

२७. पत्र: 'नेटाल मर्क्युरी' को[१]'

डर्बन
२ फरवरी, १८९७

सम्पादक
'नेटाल मयुरी'
महोदय,

मैं भारतके अकालके सम्बन्धमें कुछ विचार व्यक्त करना चाहता हूँ। उसके सम्बन्धमें ब्रिटिश उपनिवेशोंसे धनकी अपील की गई है। शायद आम तौरसे लोग जानते नहीं हैं कि भारत अपने राजा-महाराजाओंकी सम्पत्तिके बढ़े-चढ़े बखानके बावजूद दुनियाका सबसे गरीब देश है। सर्वोच्च भारतीय अधिकारियोंका कहना है कि "शेष पाँचवाँ हिस्सा (अर्थात्, ब्रिटिश भारतकी आबादीका) या ४ करोड़ लोग पेटभर भोजनके बिना सारी जिन्दगी बसर करते हैं।" यह ब्रिटिश भारतकी साधारण अवस्था है। साधारणत: हर चार वर्षमें वहाँ अकाल पड़ता है। ऐसे समयमें उस दरिद्रताके मारे देशके लोगोंकी हालत कैसी होगी, इसकी कल्पना करना कठिन नहीं होना चाहिए। बच्चे अपनी माताओंसे छिन रहे हैं, पत्नियाँ अपने पतियोंसे। हलकेकेहलके नष्ट हो रहे हैं। और यह हालत है, एक अत्यन्त उदार सरकार द्वारा की गई पेशबन्दियोंके बावजूद। हालके अकालोंमें १८७७-७८ का अकाल सबसे उन था। उसमें मरे हुए लोगोंके बारेमें अकाल-आयुक्तकी रिपोर्ट इस प्रकार है :

भारतके ब्रिटिश शासनाधीन प्रान्तोंकी कुल आबादी

१९,७०,००,००० थी। अनुमान लगाया जाता है कि १८७७-७८ के अकालमें इसमें से ५२,५०,०००

  1. यह द इंडियन फैमिन (भारतका अकाल) शीर्षक से प्रकाशित हुआ था।