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सम्पूर्ण वाङ्मय

जैसा व्यवहार कर सकते हैं। भारतीय चाहे कितने भी स्वच्छ क्यों न हों, उपनिवेशके प्रत्येक गोरे व्यक्तिको उन्हें देखकर ही सन्ताप हो आता है। और वह सन्ताप इतना होता है कि वे थोड़ी देरके लिए भी भारतीयोंके साथ रेलगाड़ीके एक ही डिब्बेमें बैठना पसन्द नहीं करते। होटलोंके दरवाजे भारतीयों के लिए बन्द हैं।[१]... सार्वजनिक स्नानगृह भी भारतीयोंको उपलब्ध नहीं होते, फिर वे भारतीय कोई भी क्यों न हों!... आवारा-कानून गैरजरूरी तौरपर उत्पीड़क है। अक्सर वह प्रतिष्ठित भारतीयोंको बड़ी अड़चनमें डाल देता है।

मैंने यह उद्धरण इसलिए दिया है कि मेरा वह वक्तव्य लगभग डेढ़ वर्षसे दक्षिण आफ्रिकाकी जनताके सामने है और उसपर प्रायः प्रत्येक दक्षिण आफ्रिकी समाचार-पत्रने मुक्त रूपसे अपने विचार व्यक्त किये हैं। फिर भी अबतक उसका कोई खंडन नहीं हुआ। (एक पत्रने तो उसे पसन्द करते हुए उसका अनुमोदन भी किया है। फिर, इस डेढ़ वर्षकी अवधिमें मैंने ऐसी कोई बात भी नहीं देखी, जिससे मेरा वह खयाल बदल जाता। तथापि, बताया जाता है, परम माननीय चेम्बरलेन ने[२] उस वक्तव्यके ध्येयके साथ पूरी सहानुभूति रखते हुए भी माननीय दादाभाईके[३] नेतत्वमें गये शिष्टमण्डलसे कहा है कि हमारी शिकायतें भावनात्मक ज्यादा ठोस और वास्तविक कम हैं। और यदि उन्हें वास्तविक शिकायतका कोई उदाहरण बताया जा सके तो वे वैसी शिकायतोंका निपटारा करा देंगे। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने, जिसने हमें बहत सहायता दी है और दृढ़तापूर्वक हमारी हिमायत करके हमें अत्यन्त बना लिया है, हमारी शिकायतोंको भावनात्मक बतानेपर श्री चेम्बरलेनकी लानतमलामत की है। फिर भी सच्ची शिकायतोंका प्रमाण देने के लिए और भारतमें हमारे पक्षका समर्थन करनेवालों के हाथ मजबत करने के लिए मैं स्वयं अपनी और उन लोगोंकी साक्षी देने की इजाजत चाहता हूँ, जिन्होंने खुद मुसीबतें झेली हैं। आगे दिये जानेवाले प्रत्येक विवरणका एक-एक शब्द रंच-मात्र सन्देहके भी परे सही सिद्ध किया जा सकता है।

डंडीमें पिछले वर्ष क्रिसमसके दौरान गोरोंके एक गिरोहने मजा लूटने के लिए एक भारतीय वस्तु-भंडारमें आग लगा दी थी। इस गिरोहको जरा भी उत्तेजित नहीं किया गया था। श्री अब्दुल्ला हाजी आदम, जो दक्षिण आफ्रिकी भारतीय समाजके एक अग्रगण्य सदस्य और एक जहाज-मालिक हैं, मेरे साथ कैज़क्लूफ़ स्टेशन तक यात्रा कर रहे थे। वे डाककी गाड़ीसे नेटाल जाने के लिए वहाँ उतर गये। वहाँ कोई उन्हें रोटी मोल देने को भी तैयार न हुआ। होटलवाले ने उन्हें होटलमें कमरा नहीं दिया और उन्हें रात-भर ठंडमें ठिठुरते हुए घोडागाड़ी में ही पड़े रहना पड़ा। आफ्रिकाके

  1. यहाँ मूल पाठका एक वाक्य छोड़ दिया गया है। देखिए खण्ड १, पृ॰ १९२।
  2. जोसेफ चेम्बरलेन (१८३६–१९१४); उपनिवेश मन्त्री, १८९५–१९०२
  3. दादाभाई नौरोजी।