पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/२७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४९
प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

घोर अपमान किया है। मैं उस दृश्यका वर्णन नहीं करता। मुझे वैसा करना पसन्द ही नहीं। मैने जान-बूझकर 'डर्बन' लिखा है, क्योंकि यह आँधी डर्बनने उठाई थी और डर्बनको ही उसके फलका उत्तरदायी होना चाहिए। हम सबके सिर इस व्यवहारके कारण नीचे हो गये हैं। हमारी न्याय और औचित्यकी परम्पराएँ धूलमें मिल गई दीखती हैं। हमें अपना व्यवहार सज्जनोंका-सा रखना चाहिए, और वैसा करना हमारे स्वभावके कितना ही विपरीत क्यों न हो, हमें शिष्टता और उदारतापूर्वक खेद प्रकट करना चाहिए।—आपका, एफ॰ ए॰ लॉटन।—'नेटाल मर्क्युरी', १६ जनवरी, १८९७।

श्री गांधीकी भारतीय पुस्तिकाके विषयमें रायटरने जो संक्षिप्त तार भेजा था, उसपर गत एक-दो दिनोंमें बहुत-कुछ कहा जा चुका है।. . .निःसन्देह तारमें दिये हुए सारांशसे मनपर जो प्रभाव पड़ता है, वह उससे भिन्न है जो कि पुस्तिकाको पढ़ लेनेवालों के मनपर पड़ा है।. . .सच्ची बात यह है कि हमें मानना पड़ता है कि श्री गांधीकी पुस्तिकामें, दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी स्थितिका वर्णन, भार दृष्टिसे गलत नहीं किया गया। यरोपीय लोग भारतीयोंको अपने समान मानने से इनकार करते हैं; और भारतीयोंका खयाल है कि ब्रिटिश प्रजा होने के नाते हम उन सब सुविधाओं और अधिकारोंके हकदार हैं जो कि उपनिवेशमें यूरोपीयोंकी सन्तान ब्रिटिश प्रजाजनोंको प्राप्त है। सम्राज्ञीकी १८५८ की घोषणाके बलपर उन्हें ऐसा दावा करने का अधिकार भी है। इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके विरुद्ध भावनाएँ विद्यमान है; परन्तु साथ ही हमारा खयाल है कि शायद श्री गांधी इस वास्तविकताका कुछ अधिक विचार करेंगे कि दक्षिण आफ्रिकामें उनके प्रायः सभी देशवासी उस वर्गके हैं जिसे भारतमें भी रेलगाड़ियोंके पहले दर्जेमें यात्रा नहीं करने दी जायेगी, या ऊँचे होटलोंमें नहीं ठहरने दिया जायेगा।. . .परन्तु हम पुस्तिका और तार द्वारा भेजे हुए उसके सारांशपर फिर लौटें, तो ये सारांश ठीक उतने ही सही लिखे गये हैं, जितने कि आर्मीनियनोंके साथ तुर्कोंके बरतावका बयान करनेवाली किसी पुस्तिकाके हो सकते थे—और सचमुच, रायटरके तारको स्वतन्त्र रूपसे पढ़ने से मनपर कुछ ऐसा ही असर पड़ता है। परन्तु जब श्री गांधीकी लिखी हुई सारी पुस्तिका पढ़ते हैं तब ज्ञात होता है कि उसमें कुछ उदाहरण तो सचमुच वास्तविक कठिनाइयोंके दिये गये हैं, पर उसका अधिकतर भाग ऐसी राजनीतिक शिकायतोंसे भरा पड़ा है जैसीकि बहुत बार ट्रान्सवालके परदेशी (एटलॉण्डर) किया करते हैं। संक्षेपमें, इस पुस्तिकामें ऐसी कोई बात नहीं है जो श्री गांधी नेटालमें पहले प्रकाशित न कर चुके हों और जो अबतक साधारणतया अज्ञात हों। दूसरी ओर, श्री गांधी या अन्य किसीके लिए ऐसा प्रयत्न करना व्यर्थ है कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंका वही दरजा स्वीकार किया जाये, जो वे स्वयं अपना मानते हैं। इस मामलेमें मक्कारी करने से कोई लाभ नहीं होगा। भारतीयोंके यहाँ भारी संख्यामें आने, उनके रीति-रिवाजों और उनके रहन-सहनके तरीकोंके विरुद्ध इस देशमें प्रबल और गहरी भावना विद्यमान है। कानूनकी दृष्टि से वे