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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संरक्षक भारतीय प्रवासियोंकी रक्षा करने के लिए नियुक्त किया गया है! अगर उपनिवेशमें ये हालतें हैं (लेखक आगे कहता है) तो वे अपनी फरियाद लेकर किसके पास जायें?

मेरे खयालसे, मजिस्ट्रेट सफाई नहीं सुनता—इस कथनमें कुछ भूल अवश्य है। नेटाल सरकारके मुखपत्र 'नेटाल मर्क्युरी' के १३ अप्रैल, १८९५ के अंकमें निम्नलिखित संपादकीय प्रकाशित हुआ है :

प्रतिष्ठित भारतीयोंके लिए एक बहुत महत्त्वको मुद्दा उनकी गिरफ्तार होने की शक्यता है। इससे बहुत ईर्ष्या-देष भी उत्पन्न होता है। यहाँ मैं एक उदाहरण दे दूँ। डर्बनमें एक सुविख्यात भारतीय है। शहरके विभिन्न भागोंमें उसकी जायदाद है। वह सुशिक्षित और बहुत बुद्धिमान भी है। सिडनहममें भी उसकी जायदाद है। पिछले दिनों एक रातको वह अपनी माँ के साथ सिडनहम गया था। वहाँ उसे पुलिसके दो आदिवासी सिपाही मिले। उन्होंने उस नौजवानको उसकी माँ के साथ गिरफ्तार कर लिया और वे उन्हें पुलिस-थानेमें ले गये। इतना कह देना जरूर न्यायसंगत होगा कि उन पुलिसवालों ने अपना बरताव बड़ा सराहनीय रखा। वहाँ उस नौजवानने बताया कि वह कौन है और जाँच-पड़तालके लिए उसने दूसरोंके नाम भी दिये। आखिरकार नायकने उसे यह चेतावनी देकर छोड़ दिया कि अगर दुबारा तुम्हारे पास परवाना न हुआ तो तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जायेगा और तुमपर मुकदमा चलाया जायेगा। वह नौजवान एक ब्रिटिश प्रजाजन है और एक ब्रिटिश उपनिवेशमें रहता है। इस नाते वह अपने साथ किये गये इस तरहके बरतावपर आपत्ति करता है, हालांकि वह आम तौरपर चौकसीकी जरूरतसे इनकार नहीं करता। वह जो दलीलें पेश करता है वे बहुत जोरदार हैं और अधिकारियोंको निश्चय ही उनपर विचार करना चाहिए।

न्यायकी माँग है कि यहाँ अधिकारियोंका कथन भी दे दिया जाये। वे यह तो मानते हैं कि शिकायत सच्ची है, परन्तु पूछते है कि हम गिरमिटिया मजदूर और स्वतन्त्र-भारतीयके बीचका फर्क कैसे पहचाने? दूसरी ओर, हमारा कहना यह है कि इससे सरल तो कुछ हो ही नहीं सकता। गिरमिटिया भारतीय कभी भी भद्र पोशाक नहीं पहनते। फिर जब किसी भारतीयके बारेमें अनुमान लगाया जाये—खास तौरसे उस किस्मके भारतीयके बारेमें जिसकी मैं चर्चा कर रहा हूँ—तो वह अनुमान उसके अनुकूल होना चाहिए, प्रतिकूल नहीं। किसी भारतीयको भगोड़ा मान लेनेमें उतना ही औचित्य है, जितना कि किसी आदमीको चोर मान लेनेमें। अगर कोई भारतीय भाग ही जाये और भद्र दिखाई देने का बन्दोबस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी तो कोई भावना है, ऐसा माना ही नहीं जाता। वे