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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

उलटे, पिछली रिपोर्ट से मालूम होता है कि जबकि जनवरीमें समाप्त होनेवाले पिछले ६ महीनोंमें भारतीयोंमें केवल ६६६ व्यक्तियोंकी वृद्धि हुई होगी[१] तब यूरोपीयोंकी वृद्धि करीब-करीब २,००० रही। फिर विधेयकका मंशा जिस वर्गके भारतीयोंको रोकने का है उसकी संख्या केवल ५,००० है। इसके विपरीत यूरोपीयोंकी संख्या ५०,००० है। नेटालम दस वर्ष पूर्व उच्च न्यायालयके पहले छोटे न्यायाधीश सर वाल्टर रैग की अध्यक्षतामें जो आयोग बैठाया गया था, उसने भी सोच-विचारकर अपना यह मत दिया था :

हमने बहुत देखा है। उसके आधारपर हमें यह कहने में सन्तोष है कि इन व्यापारियोंकी उपस्थिति सारे उपनिवेशके लिए कल्याणकारी सिद्ध हुई है। उनको हानि पहुँचाने का कोई कानून बनाना अगर अन्यायपूर्ण नहीं तो अबुद्धिमत्ताका कार्य जरूर होगा।

यही एकमात्र अधिकृत मन्तव्य है, जिससे स्थानिक विधानमंडल मार्गदर्शन ले सकता था। इन तथ्योंके होते हुए प्रार्थी अब भी आशा करते हैं कि सम्राज्ञीसरकार नेटालके भारतीयोंकी स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगाने की आवश्यकताके बारेमें अन्तिम निर्णय करने के पहले ऊपर बताये हुए ढंगकी जाँच करायेगी। अर्थात्, अगर सम्राज्ञी-सरकार निश्चय करे कि १८५८ की घोषणाके बावजूद एक ब्रिटिश उपनिवेश भारतीयोंको हानि पहुँचानेवाला कानून बना सकता है, अगर वह इस निष्कर्षपर पहुँचे कि उक्त घोषणासे भारतीयोंको इस अर्जीमें कहे हुए अधिकार नहीं मिलते, अगर वह मानती है कि नेटालमें भारतीयोंकी संख्या भयानक गतिसे बढ़ रही है और उपनिवेशके लिए भारतीय अभिशापस्वरूप हैं, तो यह बहुत ज्यादा सन्तोषजनक होगा कि भारतीयोंपर विशेष रूपसे लागू होनेवाला कोई कानून पेश कर दिया जाये।

जब ट्रान्सवाल-सरकारको अपना परदेशियों (एलिएन्स)-सम्बन्धी कानून[२] वापस ले लेने के लिए बाध्य होना पड़ा है, तब नेटाल-सरकारने एक प्रवासी-कानून मंजूर कर लिया है। हम अत्यधिक आदरके साथ निवेदन करते हैं, यह विचित्र मालूम पड़ता है। नेटालका प्रवासी-कानून तो ट्रान्सवालके कानूनसे बहुत अधिक कठोर है। अब प्रार्थी समाचार-पत्रोंके कुछ अंश उद्धृत करने की इजाजत चाहते हैं। इनसे मालूम होगा कि प्रवासी-प्रतिबन्धक कानून के विषयमें पत्रोंका मत क्या है :

खण्ड ४ में व्याख्या की गई है कि जो वर्जित प्रवासी इस कानूनकी अवहेलना करके उपनिवेशमें प्रवेश करे, उसे क्या दण्ड दिया जा सकता है। यह दण्ड है निर्वासन या ६ महीनेकी कैद, या दोनों। अब, हमारा खयाल है, ज्यादातर लोग हमसे सहमत होंगे कि उपनिवेशके लिए अपने खुदके कल्याण की दृष्टिसे प्रवासियोंके आगमनपर प्रतिबन्ध लगाना कितना भी जरूरी क्यों

  1. देखिए पृ॰ १९८।
  2. देखिए पृ॰ ३१०–११।