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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

उद्देश्यसे बनाया गया था। सभी जानते हैं कि श्री चेम्बरलेनने उस कानूनका विरोध किया था और फोक्सराटने उसे तुरन्त रद कर दिया था। परन्तु यह निचित है कि यदि वह कानून नेटालके लिए अच्छा है, तो ट्रान्सवालके लिए शायद ही बुरा हो सकता है।—'ट्रान्सवाल एडवर्टाइज़र', २२–५–९७।

नेटालका नया कानून इस सामान्य सिद्धान्तका भंग करनेवाला ही नहीं, उससे ज्यादा है। इसके अतिरिक्त अगर उसे मंजूर करने के पक्षमें पेश किये गये दावेको मान्य करना है, तो वह अप्रामाणिक कानून भी है। उसकी व्यवस्थाएँ तो सबपर लागू होनेवाली हैं, परन्तु सरकारने विधानसभामें खुले आम स्वीकार किया है कि उनका प्रयोग केवल अमुक वर्गोंपर ही किया जायेगा। वर्गगत कानून बनाने का यह तरीका हद दर्जेका नाशकारी है। वर्गगत कानून तो आम तौरपर गलत या अनिष्ट है। परन्तु जब कोई वर्गगत कानून ऐसे रूपमें स्वीकार किया जाता है, जिससे मालूम नहीं पड़ता कि वह किसी एक वर्गके लिए है, तब तो उसके अन्दरूनी दोष बहुत ही प्रबल हो जाते हैं। इसके अलावा, फिर किसी भी संसदके लिए यह कायरताको बात है कि वह यह बताकर कि कानूनका लक्ष्य वर्गगत व्यवस्था नहीं है, वास्तवमें वर्गगत कानूनको पास करे और इस तरह उसे खुले रूपमें स्वीकार करने के परिणामोंसे भागे। नेटाल प्रवासी प्रतिबन्धक कानूनका स्पष्ट उद्देश्य स्वतन्त्र भारतीयोंको भरमारको रोकना है। याद रहे, सब भारतीयोंको रोकना नहीं है। गिरमिटिया मजदूरोंको इस कानूनके अमलसे मुक्त लोगोंकी उसी श्रेणीमें शामिल किया जायेगा जिसमें, यों कहिए कि, ब्रिटेनके युवराजको। तिसपर, सच यह है कि, नेटालमें लाये जानेवाले अधिकतर मजदूर भारतीयोंकी निम्नतम श्रेणीके लोग हैं, जो कलकत्ता और बम्बई की गन्दगीसे उठाकर लाये जाते हैं। व्यक्तिगत तुलना की जाये तो अपने खर्चसे नेटाल आनेवाले भारतीय दूसरेके खर्चपर लादकर लाये जानेवाले दरिद्र मजदूरोंकी अपेक्षा ज्यादा ऊंची, कोटिके होंगे। परन्तु उनके नीचीसे-नीची जातिके इन गिरमिटिया देशवासियोंको आने दिया जायेगा, क्योंकि वे तो गुलाम हैं। फिर भी इस तरह आने दिये गये ये आधे गुलाम यदि चाहें तो पाँच वर्षके समयमें अपनी स्वतन्त्रताकी माँग कर सकते हैं और स्वतन्त्र भारतीयोंके रूपमें नेटालमें बस सकते हैं।—'स्टार', १०–५–९७।

श्री चेम्बरलेनने इस राज्यमें बनाये गये अपेक्षाकृत बहुत कम सन्तापजनक कानूनके बारेमें जो रुख अख्तियार किया है, उसके बाद वे नेटालके कानूनको न्याय और औचित्यके किसी खयालसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। हमारा राज्य तो उनके 'प्रभावक्षेत्र' में नेटालको अपेक्षा बहुत कम है।—'स्टार', ७–५–९७।