पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/३१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९३
प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

वे कोई हिसाब-किताब रखते ही नहीं। पीड़ित पक्षके उच्चतम न्यायालय में फरियाद करनेपर जो आपत्ति की गई है, उसका कारण यह दीख पड़ता है कि परवाना-अधिकारी अपने विवेकाधिकार-प्रयोगको न्यायालयके सामने उचित सिद्ध न कर सकेगा।

यह प्रश्न भी उठता है कि परवानोंको नये करने के बारेमें क्या किया जायेगा। क्या परवाना-अधिकारी आदेश दे तो सैकड़ों और हजारों पौंडका माल रखनेवाले व्यापारियोंको अपना कारबार बन्द कर देनेको कहा जायेगा? विधानसभाके एक श्री स्मिथको एक उपाय सूझा। उन्होंने प्रस्ताव किया कि जिन लोगोंके पास परवाने हैं उन्हें अपना कारबार बन्द करने के लिए एक वर्षका समय दिया जा सदनको ध्यान दिलाया कि फ्री स्टेट तकने व्यापारियोंको अपना काम बन्द करने के लिए बाध्य करने के पहले उचित समय दिया था। परन्तु दुर्भाग्यसे यह प्रस्ताव गिर गया।

'नेटाल एडवर्टाइज़र' (५-६ १७) ने विधेयकके बारेमें अपने विचार इस प्रकार प्रकट किये हैं :

अफसोसकी बात है कि जिन तमाम सदस्योंने प्रवासी-विधेयक द्वारा ब्रिटिश परम्पराओंके भंग किये जानेका साहसपूर्वक विरोध किया था, उन्होंने परवानाविधेयकमें निहित प्रजाकी स्वतन्त्रताकी उससे भी बहुत गम्भीर अवहेलनाको बिना नाक-भौं चढ़ाये पी लिया। विधेयकके उद्देश्यसे हम पूर्णतया सहमत हैं। हम कॉर्पोरेशनको भारी अधिकार देनेके बारेमें कुछ सदस्योंके भयको भी बहुत महत्त्व नहीं देते। न्यायालयमें अपील करने का अधिकार छीनना अपेक्षाकृत बहुत गम्भीर और खतरनाक है। सचमुच यही एक बात है, जिससे विधेयकके द्वारा दिये गये अधिकार खतरनाक हो सकते हैं। एक ऐसा कानून बना लेना बिलकुल सरल था, जो इसी विधेयकके बराबर आवश्यक हितोंका संरक्षण कर सकता और लोगोंके न्यायालयमें अपील करने का अधिकार छीनने के लिए ऐसे भोंडे और राजनीतिज्ञता-विहीन कानूनका आश्रय लेना जरूरी न होता। तात्कालिक जरूरतका कोई दबाव इस विधेयकको उचित नहीं ठहरा सकता। प्रधानमंत्रीका यह तर्क उनको और उनके श्रोताओंको शोभा देनेवाला नहीं है कि "अगर विवेकाधिकार सर्वोच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय को हो तो वह विवेकाधिकार रहेगा ही नहीं। हम यह नहीं कर सकते कि विवेकाधिकार दें तो परवाना-अधिकारीको, और उसका प्रयोग करने दें किसी औरको।" वर्तमान कानूनके अन्तर्गत भी परवाना-अधिकारीको विवेकाधिकार है, परन्तु उससे सर्वोच्च न्यायालयके अन्तिम अधिकारका अपहरण नहीं होता। इसके अलावा, यह तर्क तो विधेयकको एक व्यवस्थासे ही-छिन्न-भिन्न हो जाता है। वह व्यवस्था औपनिवेशिक मंत्रीके सामने अपील करनेका हक देनेवाली है। इस तरह यह विधेयक परवाना-अधिकारीको विवेकाधिकार देकर दूसरेको उसका प्रयोग तो करने ही देता है।