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दक्षिण अफ्रीकावासी ब्रिटिश भारतयोंकी कष्ट-गाथा

ही एक विशेष तरीकेसे अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओंका आग्रह भी रखते हैं। शायद यह उन्हें कभी सूझा ही नहीं कि भारतीय व्यापारी भी ब्रिटिश प्रजाजन हैं और वे उतने ही न्यायके साथ उन्हीं स्वतंत्रताओं और अधिकारोंका दावा करते हैं। अगर पामर्स्टनके जमानेके एक वाक्यांशका प्रयोग किया जा सके, तो कमसे-कम यह कहना होगा कि, जो अधिकार कोई दूसरेको देनके लिए तैयार न हो, उनपर अपना दावा जताना ब्रिटिश स्वभावके बहुत विपरीत है। एलिजाबेथ-कालीन एकाधिकार जबसे मिटे तबसे सबको व्यापारका समान अधिकार प्राप्त हो गया है और यह ब्रिटिश संविधानका एक अंग-सा बन गया है। अगर कोई इस अधिकारमें हस्तक्षेप करे तो ब्रिटिश नागरिकताके विशेषाधिकार एकाएक उसके आड़े आ जायेंगे। भारतीय व्यापारी स्पर्धामें अधिक सफल हैं और वे अंग्रेज व्यापारियोंकी अपेक्षा कममें गुजारा कर लेते हैं—यह तर्क सबसे कमजोर और सबसे अन्यायपूर्ण है। ब्रिटिश वाणिज्यको नींव ही दूसरे देशोंके साथ अधिक सफलतापूर्वक स्पर्धा करने की शक्तिपर रखी गई है। जब अंग्रेज व्यापारी चाहते है कि सरकार उनके प्रतिद्वन्द्रियोंके अधिक सफल व्यापारके खिलाफ हस्तक्षेप करके उन्हें संरक्षण प्रदान करे, तब तो सचमुच संरक्षण पागलपनकी हदतक पहुंच जाता है। भारतीयोंके प्रति अन्याय इतना स्पष्ट है कि जब केवल इन लोगोंकी व्यापारिक सफलताके कारण हमारे देशवासी इनके साथ देशी लोगों-जैसा व्यवहार कराना चाहते हैं तो उनपर शर्म-सी आती है। भारतीयोंको गिरे हुए स्तरसे उन्नत कर देनेके लिए तो स्वयं यह कारण ही काफी है कि वे प्रबल जातिके विरुद्ध इतने सफल हुए हैं। ('केप टाइम्स' १३-४-१८८९)

लन्दन 'टाइम्स' के शब्दोंमें, प्रश्नका निचोड़ यह निकलता है : "क्या भारतीयों को भारतसे रवाना होते समय कानूनकी दृष्टिसे वही हैसियत मिलनी चाहिए, जो दूसरे ब्रिटिश प्रजाजनोंको प्राप्त है? वे एक ब्रिटिश उपनिवेशसे दूसरेमें स्वतन्त्रतापूर्वक जा सकते हैं या नहीं? और वे सहयोगी ब्रिटिश उपनिवेशोंमें ब्रिटिश प्रजाके अधिकारोंका दावा कर सकते हैं या नहीं?" वही पत्र फिर कहता है :

भारत-सरकार और स्वयं भारतीय विश्वास करते हैं कि दक्षिण आफ्रिका ही वह स्थान है, जहां उनकी मान-मर्यादाके इस प्रश्नका निबटारा होना चाहिए। अगर वे दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश प्रजाकी मान-मर्यादा प्राप्त कर लेते हैं तो अन्यत्र उन्हें वह मान-मर्यादा देनेसे इनकार करना लगभग असम्भव हो जायेगा। अगर वे दक्षिण आफ्रिकामें वह स्थिति प्राप्त करने में असफल रहे, तो अन्यत्र उसे प्राप्त करना उनके लिए अत्यन्त कठिन होगा।

इस प्रकार इस प्रश्नके निर्णयका असर न केवल दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए वर्तमान भारतीयोंपर, वरन् भारतीयोंके सम्पूर्ण भावी देशान्तर-प्रवासपर पड़ेगा। ब्रिटिश