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१०. सम्मति : प्रेक्षक-पुस्तिकामें

२६ अक्तूबर, १८९६

मुझे इस उत्तम संस्थामें[१] आनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसे देखकर अत्यधिक हर्ष हुआ। स्वयं एक गुजराती हिन्दू होनेके कारण में यह जानकर अभिमान अनुभव करता हूँ कि इस संस्थाकी स्थापना गुजराती सज्जनोंने की है। मैं कामना करता हूँ कि संस्थाका भविष्य उज्ज्वल हो! मुझे निश्चय है कि वह इसके योग्य है। क्या ही अच्छा हो कि ऐसी संस्थाएँ सारे भारतमें खड़ी हो जायें और आर्यधर्मकी, उसके शुद्ध रूपमें, रक्षाका साधन बनें।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २८-१०-१८९६

११. भाषण : मद्रासको सभामें[२]

२६ अक्तूबर, १८९६

अध्यक्ष महोदय और सज्जनो,

आज मुझे आपके सामने सोनेके देश और जेमिसनके विगत हमलेके स्थान दक्षिण आफ्रिकामें निवास करनेवाले एक लाख भारतीयोंकी ओरसे पैरवी करनी है। यह पत्र[३] आपको बतायेगा कि इस कामकी जिम्मेदारी इसपर हस्ताक्षर करनेवालों ने मुझे सौंपी है। उनका दावा है कि वे एक लाख भारतीयोंका प्रतिनिधित्व करते हैं। इन एक लाख लोगोंमें बंगाल और मद्रासके लोगोंकी संख्या बहुत बड़ी है। इसलिए, भारतीय होनेके नाते उनके हिताहितमें आपकी जो दिलचस्पी है, उसके अलावा इस विषयसे आपका विशेष सम्बन्ध भी है।

हमारे मतलबके लिए दक्षिण आफ्रिकाको इन हिस्सोंमें बाँटा जा सकता है : दो स्व-शासित ब्रिटिश उपनिवेश—नेटाल तथा शुभाशा अन्तरीप (केप ऑफ गुड होप); सम्राज्ञीके शासनाधीन उपनिवेश—जूलूलैंड; ट्रान्सवाल या दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य; ऑरेंज फ्री स्टेट; चार्टर्ड टेरिटरीज़; और पोतुगीज़ प्रदेश—डेलागोआ-बे तथा बैरा।

दक्षिण आफ्रिकामें आज भारतीयोंकी जो आबादी पायी जाती है, उसके लिए वह देश नेटाल-उपनिवेशका ऋणी है। सन् १८६० में जबकि, नेटालकी संसदके एक

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  1. हिन्दू थियोलाॅजिकल हाई स्कूल।
  2. सभा पचैयप्पा भवनमें हुई थी और उसका आयोजन महाजन-सभाने किया था।
  3. देखिए "प्रमाणपत्र", पृ॰ १।