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५१. टिप्पणियाँ

हॉर्निमैन और सावरकर बन्धु

दोस्तोंने मुझपर श्री हॉर्निमैनके मामलेमें उदासीनता बरतनेका दोष लगाया है। और कुछ दोस्तोंको इसपर भी ताज्जुब है कि मैं सावरकर बन्धुओंके[१] बारेमें इतना कम क्यों लिखता हूँ। वकीलोंमें एक मसल मशहूर है, जो कानूनका पेशा करनेवालोंके लिए करीब-करीब नीतिवाक्य ही बन गई है — टेढ़े मुकदमे कानूनको लांछित कर देते हैं।[२] एक भुक्तभोगीकी हैसियतसे मैं जानता हूँ कि यह मसल कितनी ज्यादा सच है। बहुतसे न्यायाधीशोंको सर्वथा अन्यायपूर्ण फैसले देने को मजबूर होना पड़ता है, हालाँकि कानूनी दृष्टिसे वे फैसले बिलकुल ठीक होते हैं। कुछ ऐसी ही बात असहयोग के बारेमें भी कही जा सकती है कि असहयोगके लिए पेचीदे मामले अच्छे नहीं होते। छोटेसे अखबारके सम्पादकके रूपमें, मैं केवल उन्हीं मामलोंपर लिख सकता हूँ जिनका सीधा सम्बन्ध देशके सामने उपस्थित मुख्य प्रश्नसे हो। श्री हॉर्निमैन या सावरकर बन्धुओंके बारेमें लिखनेका मेरा उद्देश्य सरकारी फैसलेको प्रभावित करना नहीं, जनताको असहयोगके लिए उत्साहित करना ही हो सकता है। श्री हॉर्निमैन बड़े काबिल और बहादुर दोस्त हैं और अगर वे देशमें लौट सकें तो मुझे खुशी ही होगी। मैं जानता हूँ कि उनका निर्वासन अन्यायपूर्ण है। सावरकर बन्धुओंकी प्रतिभा- का उपयोग जन-कल्याणके लिए होना चाहिए। अगर भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा तो मुझे डर है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र सदाके लिए हाथसे चले जायेंगे। एक सावरकर भाईको मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे लन्दनमें[३] उनसे भेंटका सौभाग्य मिला था। वे बहादुर हैं, चतुर हैं, देशभक्त हैं। वे क्रान्तिकारी हैं और इसे छिपाते नहीं हैं। मौजूदा शासनप्रणालीकी बुराईका सबसे भीषण रूप उन्होंने बहुत पहले, मुझसे भी काफी पहले, देख लिया था। आज भारतको, अपने देशको, दिलोजानसे प्यार करनेके अपराधमें वे कालापानी भोग रहे हैं। अगर सच्ची और न्यायी सरकार होती तो वे किसी ऊँचे शासकीय पदको सुशोभित कर रहे होते। मुझे उनके और उनके भाईके लिए बड़ा दुःख है। अगर असहयोग आन्दोलन न होता तो श्री हॉर्निमैन लौट आते और दोनों सावरकर बन्धु भी कालेपानीसे बहुत पहले छूटकर आ जाते लेकिन अभी तो असहयोग बाधक है। सावरकर बन्धुओंकी और जेलकी सजा भोग रहे दूसरे लोगोंकी रिहाईमें जिनकी दिलचस्पी है और जो चाहते हैं कि श्री हॉर्निमैन

  1. विनायक दामोदर सावरकर और गणेश दामोदर सावरकर प्रमुख क्रान्तिकारी जिन्हें आजन्म कारावासकी सजा दी गई थी पर बादमें १९३७ में रिहा कर दिया गया था।
  2. हार्ड केसेज मेक बैंड लो।
  3. विनायक दामोदर सावरकर से गांधीजीकी मुलाकात १९०९ में लन्दनमें विजयादशमी के उपलक्ष्य में आयोजित एक भोजमें हुई थी।