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हमें इसकी चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। हम अंग्रेज जनताको बदलनेका प्रयास भी नहीं करते। हम तो स्वयं अपने-आपको बदलनेका प्रयास कर रहे हैं।

दक्षिण आफ्रिका

वही भाई दक्षिण आफ्रिकाका उदाहरण देकर लिखते हैं कि जैसी दशा वहाँ हुई क्या वैसी ही यहाँ नहीं हो जायेगी? हम वहाँ लड़े और जीते; तथापि हम आज फिर वहींके वहीं हैं, जहाँसे हम चले थे। यह गलतफहमी है। जिस कानूनको बदलवानेके लिए हम लड़े थे वह तो बदल ही दिया गया। वहाँकी लड़ाई राज्य-पद्धतिको बदलनेकी नहीं थी, वह तो अमुक कानूनके विरुद्ध थी। रौलट अधिनियम रद हो गया होता और अन्य दुःख जैसे-तैसे रह जाते तो भी वह सत्याग्रहकी विजय ही होती। रौलट अधिनियमपर अमल किया जाना तो बन्द हो ही गया। रौलट अधिनियमको संविधान पुस्तिकासे नहीं हटाया गया इसलिए और इस बीच अन्य बातोंको लेकर हमें लड़ना पड़ा। यदि हम खिलाफत और पंजाबके सम्बन्धमें न्याय प्राप्त कर लेंगे तथा राज्यनीतिको बदल सकेंगे तो कमसे कम उतना मिला तो माना ही जायेगा। लेकिन सम्भव है कि उसके बाद अन्य दूसरे तथा नये विघ्न आ जायें, लेकिन उससे क्या? शूरोंके सामने लड़ाई लड़नेके अवसर तो आते ही रहते हैं। जब विघ्न सामने आये तब सत्याग्रह रूपी शस्त्र भण्डार तो तैयार ही है, उस भण्डारमें से जिस शस्त्र की जरूरत होगी, वह सत्याग्रहीको मिल जायेगा।

सफेद टोपी

सफेद टोपीको गांधी टोपी कहकर संयुक्त प्रान्तके एक कलक्टरने सरकारी नौकरोंको उसे पहननेसे मना किया है। शिमलामें अनेक सरकारी नौकर मुझसे मिलने आये, उनसे मैंने कहा, “आप नौकरीमें रहते हुए भी तिलक स्वराज्य कोषमें अवश्य चन्दा दे सकते हैं और खादीकी पोशाक पहन सकते हैं। आप विदेशी टोपियोंके बदले खादीकी टोपियाँ पहन सकते हैं।” उन्होंने कहा : “यदि हम खादीकी टोपी और कपड़े पहनेंगे तो हमें नौकरीसे निकाल दिया जायेगा।” इन दुर्बल वचनोंको सुनकर मुझे दुःख हुआ। यदि खादीकी टोपी पहनना अपराध माना जाता है तो वह अपराध करके नौकरी से मुक्त होना ही सर्वथा उचित माना जायेगा। और फिर यदि ज्यादा लोग खादीकी टोपी पहनें तो कोई उन्हें नौकरीसे निकाल भी नहीं सकता और अगर निकाल भी दे तो उन्हें निश्चिन्त रहना चाहिए। क्या प्रजामें इतना भी बल नहीं आया कि वह अपनी इच्छानुसार कपड़े पह्ननेकी स्वतन्त्रताका परिचय दे सके? मुझे तो यह उम्मीद है कि जनता, सरकारी वर्ग और अन्य वर्गके लोग खादीकी टोपी आदिको सुसंस्कृत पहरावा मानकर अवश्य ही उसका उपयोग करेंगे।

स्थायी अंग

असहयोगका एक अंग अस्थायी है और दूसरा स्थायी। स्थायी अंग तो सभीपर लागू होता है। वह यह कि हम स्वराज्य मिलनेके बाद खादीका त्याग करके विदेशी वस्त्र न पहनें, फिरसे शराब न पीने लगें और स्वराज्य मिलनेके बाद शिक्षा-पद्धतिमें