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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं एक मित्र के साथ बातचीत कर रहा था। उन्होंने चरखेको प्रधानपद दिया, मेरे द्वारा इसका कारण पूछनेपर उन्होंने कहा कि चरखा हमें आर्थिक स्वतन्त्रता तो देगा ही, लोगोंको स्वावलम्बी भी बनायेगा लेकिन सबसे अधिक सेवा तो उसकी यह होगी कि इससे स्त्री-पुरुष दोनोंको चैनसे विचार करनेका अवसर मिलेगा और सब शान्त तथा पवित्र होंगे। जो निरन्तर चरखा कातेंगे उनपर उसकी इतनी गहरी छाप पड़ेगी जितनी गहरी छाप किसी और चीजकी नहीं पड़ सकती।

कौन शामिल हो सकते हैं?

एक मित्र पूछते हैं कि क्या कांग्रेसमें सहकारवादी भी सदस्य बन सकते हैं? जो कांग्रेसके संविधानको स्वीकार करते हैं वे सहकारवादी होनेके बावजूद सदस्य बन सकते हैं। तथापि मेरे विचारसे वे प्रतिनिधि नहीं हो सकते।

राष्ट्रीय झंडा

वही मित्र कहते हैं कि चरखेके प्रति सबको श्रद्धा नहीं है, अनेक लोगोंको उसकी शक्ति के सम्बन्धमें शंका है, तो फिर क्या भारतीय झंडेपर कोई दूसरा चिह्न नहीं लगाया जा सकता? उन्होंने ओंकार सुझाया है। हकीकत यह है कि प्रत्येक निशानीका कोई-न-कोई तो अवश्य विरोध करेगा। लेकिन करोड़ों हिन्दू और मुसलमान जिसे स्वीकार करें वैसी शक्ति चरखेमें तो है ही। ओंकारमें भले ही अर्धचन्द्र हो तथापि सब मुसलमान तो उसे स्वीकार नहीं कर सकते। मेरा दृढ़ विश्वास है कि राष्ट्रीय झंडेमें किसी धर्म विशेषका प्रतीक नहीं आना चाहिए।

खिलाफत “नोट”

एक मित्रने मुझे उलाहना दिया है कि खिलाफतकी एक रुपये की रसीदका उपयोग नोटके रूपमें किया जाता है और उसके सम्बन्धमें मैंने कुछ भी नहीं लिखा। मुझे पता था कि इस सम्बन्धमें खिलाफत समितिने कड़े कदम उठाये थे; इसीलिए मैंने कुछ भी नहीं लिखा। इस सम्बन्ध में मेरे पास यह पहली ही शिकायत आई है। हजारों रुपयेकी रसीदें बेच डाली गई हैं। लेकिन अब बहुत कम लोग इसका उपयोग नोटके रूपमें कर रहे होंगे। शुरू-शुरू में ऐसी गलत धारणा जरूर थी। इससे समितिको ही नुकसान होने लगा, फलतः समितिने ही कड़ी कार्रवाई की थी।

रामराज्यका अनर्थ

यही मित्र रामराज्यका अक्षरार्थ करते हुए पूछते हैं कि जबतक राम और दशरथ जन्म नहीं लेते तबतक क्या रामराज्य मिल सकता है? हम तो रामराज्यका अर्थ स्वराज्य, धर्मराज्य, लोकराज्य करते हैं। वैसा राज्य तो तभी सम्भव है जब जनता धर्मनिष्ठ और वीर्यवान् बनेगी। कांग्रेस तथा सभी असहयोगी प्रयत्नशील हैं कि जनता धार्मिक बने। यदि कोई राजा स्वयं प्रजाके बन्धन काट दे तो भी प्रजा उसकी गुलाम बनी रहेगी, भले ही वह सद्गुणी हो। हम तो राज्यतन्त्र, राज्यनीतिको बदलनेके लिए प्रयत्न कर रहे हैं; बादमें हमारे सेवकके रूपमें अंग्रेज रहेंगे अथवा भारतीय