पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मानोंके खिलाफ ईसाइयों और यहूदियोंको उसपर कब्जा करनेका कोई अधिकार नहीं है। ब्रिटिश संरक्षण भारतीय मुसलमानोंके साथ दगा और दुनियाके मुसलमानोंके साथ लुटेरापन है।

हिंसा के मामले में श्रीकृष्णके विचारोंसे मतभेदके साहसका जो श्रेय श्री जेठमलने मुझे दे दिया है उसे मैं स्वीकार नहीं कर सकता। मैं तो सिर्फ यही कहनेका साहस करता हूँ कि भगवान् कृष्णने ‘गीता’ में हिंसाका उपदेश कहीं नहीं दिया। गीताकी मेरी व्याख्या यहीं है कि उसमें एक ऐतिहासिक प्रसंगको आधार बनाकर धर्मका उपदेश किया गया है; और महाभारतके जिस युद्धका उसमें उल्लेख है वह सांसारिक युद्ध न होकर मनुष्यके कुरुक्षेत्ररूपी मनमें निरन्तर चल रहा आध्यात्मिक संघर्ष है। निर्द्वन्द्वताके उपदेशको मैं और किसी रूपमें समझ ही नहीं सकता। जो व्यक्ति द्वन्द्वातीत हो जाता है वह ‘बाइबिल’ के पूर्ण पुरुषकी नाई पृथ्वीके किसी भी प्राणीको हानि नहीं पहुँचा सकता। वह अपने अहम्को इतनी पूर्णताके साथ निःशेष कर देता है कि फिर उसका पुनर्जन्म नहीं होता।

लेकिन किसी असहयोगी के लिए यह जरूरी नहीं कि वह मेरे इस निजी विश्वास को भी माने। उसे तो भारतके विविध तापको ठीक करनेवाली सच्ची नीति के रूपमें अहिंसापर विश्वास करना जरूरी है।

अहिंसा यानी अनघतामें सम्पूर्ण आस्था होते हुए भी मैंने खेड़ा जिलेमें फौजी भरतीका काम[१] किया था। मेरी अहिंसा तो मुझे यही सिखाती है कि हथियारोंके जोरसे दुनियाको अपने साथ नहीं ले जाया जा सकता। इस डरसे कि कहीं वे दूसरों को चोट न पहुँचाएँ, मैं अपने बच्चोंके हाथ तो नहीं काट डालूँगा। सचमुच पाप-रहित वही है जो किसीको हानि पहुँचा सकता हो किन्तु फिर भी वैसा न करे। जबतक उनका हिसामें विश्वास है भारतीय सैनिकोंको हथियारकी जरूरत भी है। जिनका हिंसा में विश्वास था, मैंने सिर्फ उन्हींसे फौजमें भरती होनेके लिए कहा था। मैंने उनसे कहा कि तुम्हें सरकारसे गिला है, और मैं जानता था कि उन्हें है, तो लड़ाई में भरती हो जाओ, इससे अलग मत रहो। मैं सरकारसे सौदा करनेके खिलाफ था, क्योंकि सौदेबाजीके मैं हमेशा ही खिलाफ रहा हूँ।[२]

मैं ऐसा तो कभी नहीं सोचता कि भारत या दुनियामें कभी ऐसा भी समय आयेगा जब सभी अहिंसाके अनुयायी हो जायेंगे। पुलिस तो सतयुग में भी रहेगी। लेकिन भारतमें ऐसे समयकी कल्पना तो मैं करता ही हूँ जब हम निरे शारीरिक बलपर कमसे कम और आत्मिक बलपर ज्यादासे ज्यादा निर्भर करने लगेंगे; जब हर वर्ण के व्यक्तिके भीतर ब्राह्मणत्व सर्वोपरि होगा।

इतनी व्याख्याके बाद श्री जेठमलकी समझमें यह बात आ जायेगी कि अली बन्धुओंसे मेरी दोस्ती क्यों है। मैं यकीनन जानता हूँ कि वे अपनी बातके पक्के हैं

  1. गांधीजीने २९ अप्रैल, १९१८ के युद्ध-सम्मेलनमें दिये गये अपने आश्वासनके अनुसार गुजरात के खेड़ा जिलेका दौरा किया था और प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजोंकी सहायता के लिए लोगोंको फौज में भरती कराया था; देखिए खण्ड १४।
  2. देखिए खण्ड १४, पृष्ठ ३५९।