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गई है उससे भी मुझे इनकार करना पड़ेगा। मैं हर भले हिन्दूकी तरह प्रार्थना करता हूँ। अगर हम आदमीसे डरना छोड़ दें और ईश्वरीय सत्य की खोज करें तो मेरा विश्वास है कि हम सभी ईश्वरके सन्देश वाहक बन सकते हैं। अपने बारेमें मेरा ऐसा विश्वास है कि मैं ईश्वरीय सत्यकी खोज में लगा हुआ हूँ और आदमीका डर मेरे मनसे पूरी तरह निकल चुका है। इसीलिए मैं अनुभव करता हूँ कि ईश्वर असहयोग आन्दोलनके साथ है। ईश्वरकी इच्छाका मुझे कोई खास इलहाम होता हो, सो बात नहीं है। मेरा ऐसा पक्का विश्वास है कि उसका इलहाम तो हर आदमीको रोज ही होता हैं, पर हम लोग स्वयं ही अन्दरकी उस ‘आवाज’ की ओरसे अपने कान बन्द कर लेते हैं। हम अपने सामनेके ज्योति पुंजकी ओरसे अपनी आँखें मूंद लेते हैं। मुझे तो वह सभी में समाया हुआ — सर्वव्यापक — दिखाई देता है। और चाहे तो लेखक भी उसे देख सकता है।

एक सिन्धी आलोचक

सिन्धवालोंकी ओरसे की गई आलोचनासे मुझे हमेशा खुशी होती है। उनकी आलोचना हमेशा ही सूक्ष्म और शिष्ट होती है। सिन्ध पाश्चात्य शिक्षाके अतिरेकसे पीड़ित है, इसलिए सिन्धी युवकोंसे मुझे सहज सहानुभूति है। वे पाश्चात्य शिक्षाके तर्कजालमें उलझकर रह गये, इसलिए मैं श्री जेठमलके खुले पत्रका बहुत ही धीरजसे जवाब दूंगा, खास तौरपर इसलिए भी कि वे सत्याग्रहके मेरे शुरूके साथियोंमें रहे हैं और मैं उन्हें एक ऐसे नेताके रूपमें भी जानता हूँ जो उपेक्षित प्रश्नोंको सामने रख देते हैं। मैं आत्मनिर्णयमें विश्वास रखता हूँ। श्री जेठमलको यह नहीं मालूम कि मुसलमान फिलिस्तीनपर तुर्कोंका ऐसा कब्जा नहीं चाहते जिसमें अरबोंको कोई स्थान न हो। वे तो यही चाहते हैं कि जजीरत-उल-अरबपर मुसलमानोंका कब्जा हो। फिलिस्तीन इस द्वीप समूहका सिर्फ एक हिस्सा है। अगर बिना किसी बाहरी हस्तक्षेपके उसे अरबोंके हवाले कर दिया जाये तो उन्हें कोई एतराज न होगा। श्री जेठमलको यह बात मालूम होनी चाहिए कि इस समय फिलिस्तीन में बहुत बड़ी आबादी मुसलमानोंकी ही है। उन्हें यह बात भी मालूम होनी चाहिए कि अरबोंके कड़े विरोधके बावजूद आज फिलिस्तीन और मेसोपोटामियापर ब्रिटिश संरक्षण थोपा जा रहा है।

श्री जेठमलका तो नहीं मगर मेरा विभिन्न धर्म-ग्रन्थोंकी, उनकी अपनी-अपनी विशिष्टताओंपर पूरा विश्वास है। जिन बातोंमें तर्क-संगति और न्याय-भावनाकी दृष्टिसे परस्पर कोई विरोध न हो, मैं उन बातोंमें मुसलमानोंकी धर्म-ग्रन्थ सम्बन्धी आस्थाके साथ व्यर्थकी खींचतान करनेके पक्षमें नहीं हूँ।

लेकिन दीनकी दुहाई देनेवाले कट्टर मौलवियों और काम बनानेकी गरजसे दिये जानेवाले उनके मौकापरस्त फतवोंका डर श्री जेठमलकी तरह मुझे भी है। मगर मुसलमानोंका दावा फतवोंपर आधारित न होकर कुरानकी हिदायतोंपर अवलम्बित है, जिसे एक बच्चा भी समझ सकता है। और अगर कुरानकी हिदायतोंको छोड़ भी दें तो भी मुसलमानोंका दावा न्यायपर आधारित है। लड़ाईसे पहले जजीरत-उल-अरब मुसलमानोंके अधिकारमें था। आम तौरपर दुनियाके और खास तौरपर हिन्दके मुसल-