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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जानता हूँ और उनका कारण भी समझता हूँ। मैं ऐसा नहीं कहता कि ब्राह्मणोंका कोई दोष नहीं है। ब्राह्मण भी अपने निर्दोष होने का दावा नहीं करते। ब्राह्मणोंने अपनी धार्मिक भावनाओंकी उपेक्षा की है और उनका जीवन पवित्र नहीं रह गया है। वे कभी जिस ऊँचाईपर प्रतिष्ठित थे उससे च्युत हो गये और उनके पतनके साथ ही भारतका पतन प्रारम्भ हुआ। मैं ब्राह्मणेतर हूँ और अपने ब्राह्मणेतर मित्रोंसे अपील करता हूँ कि वे आजके ब्राह्मणोंके पतित हो जाने के कारण अपने धर्म और जीवनके आदर्शोको न भूलें। शायद आप यह न मानें कि ब्राह्मणोंकी बदौलत ही ब्राह्मणेतर अपनी कमजोरियोंके प्रति जागरूक होकर अपने हकोंके लिए आन्दोलन कर रहे हैं। किन्तु फिर भी यह सच है कि अपने पतनके बावजूद आज भी ब्राह्मण राजनीतिक और सामाजिक सभी आन्दोलनोंमें सबसे आगे हैं। दलित वर्गोंकी उन्नतिके लिए अन्य जातियोंकी अपेक्षा ब्राह्मण ही अधिक प्रयत्न कर रहे हैं। लोगोंके सभी वर्ग देशभक्ति के लिए लोकमान्य तिलकका आदर करते हैं। आन्ध्रमें एक ब्राह्मण सज्जनने अछूत-वर्गों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। स्वर्गीय श्री गोखले[१], श्री रानडे[२] और आदरणीय श्री शास्त्री सबने पिछड़े वर्गोंकी उन्नति के लिए बहुत सुन्दर काम किया है। ये सब ब्राह्मण थे। मेरी समझ में ब्राह्मण हमेशा ही आत्मत्यागके लिए प्रसिद्ध रहे हैं। आप ब्राह्मणशाहीकी बात करते हैं। परन्तु जरा हम इसकी तुलना ब्रिटिशशाहीसे करें। यह सरकार तो “फूट डालो और राज्य करो” की नीतिका अनुसरण करती है और तलवारकी ताकतसे अपनी सत्ता कायम रखती है। ब्राह्मणोंने शस्त्रबलका सहारा कभी नहीं लिया। उन्होंने केवल अपने बुद्धिबल, आत्मत्याग और तपस्या द्वारा अपनी प्रभुता स्थापित की। किसीको भी उनकी प्रभुतासे ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। मैं अपने ब्राह्मणेतर भाइयोंसे अपील करता हूँ कि वे ब्राह्मणोंसे घृणा न करें और नौकरशाहीके जालमें न फँसें।

ब्राह्मणेतर लोग धनी हैं। कृषि और वाणिज्य उनके हाथमें है। यदि वे सार्वजनिक सेवाओंकी आकांक्षा रखते हैं तो असहयोग आन्दोलन द्वारा उसका रास्ता भी उनके लिए खोल दिया गया है। असहयोग तो ब्राह्मण-अब्राह्मण सबकी समान रूपसे भलाई के लिए है। आप कहते हैं कि स्कूलों और कालेजोंके बहिष्कारकी सलाह शिक्षित ब्राह्मणोंको स्वीकार्य हो सकती है परन्तु उन अब्राह्मणोंके लिए वह सलाह जरूर हानिकर होगी जो अभी अशिक्षित हैं। आप यह भी कहते हैं कि मैं आधुनिक शिक्षाकी एक अच्छी देन। परन्तु मैं आपको इतना अवश्य बतला देना चाहता हूँ कि आधुनिक शिक्षाने हम सबको कायर बना दिया है। हमारी बेबसी और पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेषका कारण यही शिक्षा है। इसने हममें गुलामीकी मनोवृत्तिको बढ़ाया है। आप मुझमें जो गुण बताते हैं, निश्चय ही वे इस शिक्षा के परिणाम नहीं हैं। मैंने बहुत पहले इस शिक्षाके सम्मोहक प्रभावसे अपनेको मुक्त कर लिया था। मैं जो कुछ हूँ,

  1. गोपाल कृष्ण गोखले (१८६६ - १९१५); शिक्षा-शास्त्री और राजनीतिज्ञ। भारत सेवक समाज (सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के संस्थापक।
  2. (१८४२-१९०१ ); समाज-सुधारक और लेखक; कांग्रेसके संस्थापकों में से एक।