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८२. भाषण : गुजरात राजनीतिक परिषद्, भड़ौंचमें[१]

१ जून, १९२१

यह एक ऐसा प्रस्ताव है जिसे कोई भी सीधा-सादा बालक अथवा बालिका समझ सकती है। इस प्रस्तावके पूरे होनेपर हिन्दुस्तानका स्वराज्य निर्भर है, खिलाफतके प्रश्नका समाधान इसपर निर्भर करता है और पंजाबके न्यायकी आधारशिला भी यही है। गुजरातके भाई-बहनोंको में पिछले वर्षकी याद दिलाता हूँ। पिछले साल जब कांग्रेस ने असहयोगका प्रस्ताव पास नहीं किया था तब भी हमने असहयोगका प्रस्ताव पास किया था। जब पंजाबके न्याय और स्वराज्यकी बाततक भी न थी तब हमने, गुजरातके हिन्दुओं और मुसलमानोंने, सोच लिया था कि खिलाफतके प्रश्नका निर्णय हम अपनी सात्विक सत्ताके बलपर करेंगे। भले ही सारा भारत यह न समझे कि पंजाब और स्वराज्य के प्रश्नका निबटारा खिलाफत प्रश्नके निर्णयके अन्तर्गत ही आता है तब भी हम गुजरातियोंने अपने सर्वस्वकी बलि देकर खिलाफतके प्रश्नका समाधान कर लेनेका निश्चय किया था। उस समय गुजरातने जिस श्रद्धा भावनाका परिचय दिया था उसकी मैं आपको याद दिला देना चाहता हूँ। श्री विठ्ठलभाईने हमपर आक्षेप लगाया है कि हमने अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया, हमने पूरा-पूरा चन्दा नहीं दिया। यदि हम अपने कर्त्तव्यको पूरा नहीं करेंगे तो इसी आक्षेपके योग्य ठहरेंगे। लेकिन यदि हम निश्चय करेंगे तो अपने कर्त्तव्यको पूरा करके हम तीस दिनोंमें ही आक्षेपके इस धब्बेको धो सकेंगे। इस परिषद् में आये हुए भाई-बहन, सारा हिन्दुस्तान क्या करेगा, इसका विचार न करके अगर सोते, खाते, बैठते गुजरातके प्रति अपने कर्त्तव्यको याद रखेंगे तो दस लाख रुपया, एक लाख चरखे और तीन लाख सदस्य जरूर बना सकेंगे।

चरखेसे यह सरकार किस तरह हट जायेगी, यह प्रश्न पूछा गया है। उसका जवाब यह है कि सरकार चरखेको देखकर नहीं चली जायेगी बल्कि निर्धारित अवधिके बीच बीस लाख चरखोंको चलाना शुरू करके आप दुनियाके सम्मुख जिस श्रद्धा, विश्वासका परिचय देंगे उसे देखकर यह सरकार हमारी शरण आयेगी। यह हमारी शक्तिका मापदण्ड है। जब आप इतना कर दिखायेंगे उस समय संसार जान लेगा, सरकार समझ जायेगी कि आप श्रद्धालु हैं, आप सचमुच स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं। उस समय हमें सिपाहियोंसे हथियार छोड़ देने अथवा जनतासे कर न देनेकी बात कहने की जरूरत न रहेगी। जबतक हिन्दुस्तानमें यह श्रद्धा नहीं आती तबतक चरखा जितनी आसान चीज है उतनी ही मुश्किल भी है। जब घर-घरमें लोग चरखा चलाने लगेंगे तब हिन्दुस्तानमें एक भी व्यक्ति भूखों नहीं मरेगा, औरतोंको आजीविका कमानेके

  1. वेजवाड़ा में हुए कांग्रेस अधिवेशनमें जो कार्यक्रम निश्चित किया गया था उसे तीस जूनसे पहले- पहले खत्म करनेके लिए और भी ज्यादा प्रयत्न करनेके सम्बन्धमें इस परिषद् में एक और प्रस्ताव पेश किया गया था। गांधीजीने यह भाषण उसी भवसरपर दिया था।