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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लिए अपने शीलका सौदा नहीं करना पड़ेगा; उस समय हिन्दुस्तानमें धर्मराज्य होगा, रामराज्य होगा, खुदाका राज्य होगा।

एक लाख चरखे चालू करना, [ कांग्रेसके ] तीन लाख सदस्य बनाना और दस लाख रुपया इकट्ठा करना - यह सब गुजरातकी शक्तिका मापदण्ड है। यह सवाल भी पूछा गया है कि यद्यपि गुजरात के हिस्सेमें तीन लाख रुपया आता है तथापि उस- पर दस लाख रुपया इकट्ठा करनेका बोझ क्यों लादा गया है? गुजरातको हमने इस संघर्षका आधारस्तम्भ बनाया है और आधारस्तम्भको ही सबसे अधिक भार वहन करना पड़ता है, इसे कौन नहीं जानता? और इसीलिए इसका भाग भी अन्य प्रान्तोंकी अपेक्षा ज्यादा है। हम सबमें अगर श्रद्धा हो तो दस लाख रुपया इकट्ठा करना कोई मुश्किल काम नहीं है। यदि हम गुजरातमें इस आन्दोलनके प्रति इतनी श्रद्धा भी नहीं दिखला सकते तो मैं बम्बई जाकर व्यापारियोंके सम्मुख बात कैसे कर सकूंगा? बेजवाड़ा में निश्चित किये गये कार्यक्रमको समयपर पूरा करने के लिए हमें प्राण तक त्याग देने चाहिए। तीस जूनतक अगर यह कार्य पूरा न हो तो हमारे लिए मर जाना ही बेहतर है। यही स्वराज्यकी कुंजी है। हिन्दुस्तानने इस कुंजीको पा लिया है, यह सरकार जिस क्षण इस बातको समझ जायेगी उसी क्षण या तो वह भाग जायेगी अथवा जनताकी सेवक बनकर रहेगी।

कलकत्तामें किसी व्यक्तिने मौलाना मुहम्मद अलीसे पूछा, अनेक लोगोंका कहना है कि चरखेसे स्वराज्य प्राप्त करने की बात चमत्कार प्रतीत होती है। मौलानाने कहा, होती होगी, लेकिन छ: हजार मीलसे चलकर आये हुए मुट्ठी-भर गोरे तीस करोड़ व्यक्तियोंपर शासन कर रहे हैं यह बात अधिक चमत्कारपूर्ण है या कि चरखेसे स्वराज्य प्राप्त करनेकी बात? स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए हममें आत्मविश्वास पैदा होना चाहिए, हमें परस्पर एक हो जाना चाहिए। हिन्दुस्तान जैसे महान् मन्दिरमें ― जिसमें मुसलमानोंकी मस्जिदें हैं, हिन्दुओंके मन्दिर हैं, सिखोंके गुरुद्वारे हैं, पारसियोंके देवालय हैं — पूजा करनेके लिए गुजरातियों-जैसे पुजारी अगर दस लाख रुपया देते हैं तो हम निःसन्देह स्वराज्य के योग्य ठहरते हैं। अगर गुजरात अकेले ही इस कार्यका बीड़ा उठा लेनेको तैयार हो जाता है तो हमारे लिए वही काफी है। यदि हम इतनी योजना — शक्तिका परिचय नहीं देते, इतना बलिदान करनेके लिए तैयार नहीं होते तो हमें स्वराज्यकी बात छोड़ देनी चाहिए। इतने भरमें गरीब बनने जैसी कोई बात नहीं है। यदि सिर्फ गुजराती बहनें ही इस बातका निश्चय कर लें तो कल ही गुजरातसे दस लाख रुपया इकट्ठा करके दे सकेंगी। आज जब कि हिन्दुस्तानकी हालत असहाय विधवा जैसी है ऐसे समय हमें आभूषण पहनने अथवा शृंगार करनेका क्या अधिकार है? जब हजारों व्यक्ति भूखों मर रहे हों उस समय सोने-चांदी के आभूषण पहने ही कैसे जा सकते हैं? आप सब बहनें सौभाग्यसूचक आभूषणोंको छोड़कर अगर बाकीके आभूषण दे दें तो दस लाख रुपया घड़ी भरमें इकट्ठा हो जाये। गुजराती बह्नोंमें जब यह भावना प्रकट होगी उसी दिन इसे देखने के लिए देवता आकाशसे उतरेंगे। गुजराती बह्नोंको स्वराज्यके, स्वधर्मके इस मन्त्रको जान लेना चाहिए कि आज आभूषणोंका त्याग करनेपर ही उनके शीलकी रक्षा हो सकेगी।