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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहनोंका बलिदान

जब मैंने पैसोंकी माँग की तब जो दृश्य दिखाई दिया वह अविस्मरणीय है। एकके बाद एक बहनोंका ताँता ही बँध गया। उन्होंने आभूषणों और रुपयोंकी झड़ी लगा दी। पुरुष भी पीछे न रहे और उन्होंने भी खासी रकम दानमें दी। जहाँ एक ओर स्त्री-पुरुषोंने इतनी उदारताका परिचय दिया वहाँ दूसरी ओर मैंने सुना कि दो बह्नोंने अपने आभूषण दानमें दे दिये, इसपर उनके पतियोंने उन्हें डाँटा। आभूषण स्त्री-धन है। उसपर पुरुषोंका कोई अधिकार नहीं है। मेरी यह नम्र राय है कि अगर स्त्रियाँ अपने गहनोंका सत्कार्य के लिए उपयोग करती हैं तो पुरुषोंको उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

लेकिन मुझे स्वीकार करना चाहिए कि स्त्रियोंकी उदारतासे मुझे जितना सुख और सन्तोष हुआ उतना ही दुःख और असन्तोष मुझे उनकी पोशाकको देखकर हुआ। विलायती, जापानी और फ्रांसीसी साड़ियोंने जिस संख्यामें गुजरातमें प्रवेश किया है उस संख्यामें भारत के किसी अन्य भागमें कदाचित् ही किया हो।

इस विषयपर बहनोंको विचार करना चाहिए। हिन्दुस्तानकी खातिर, हिन्दुस्तानकी गरीब स्त्रियोंकी पवित्रताकी रक्षा करनेकी खातिर गुजरातकी बह्नोंको निश्चयपूर्वक खादीकी साड़ीके भारको वहन कर लेना चाहिए।

प्रदर्शनी

परिषद् के अन्तर्गत खादीका, चरखेका और रुई पींजनेके यन्त्रोंका प्रदर्शन भी किया गया था। चरखोंमें कोई खास नवीनता न थी लेकिन वे अलग-अलग सुविधाओंसे युक्त थे। कोई चरखा सफर के लिए हल्का और पेटीमें रखने योग्य था तो कोई सुन्दरतासे परिपूर्ण था, तो कोई मजबूतीकी दृष्टिसे बखान करने योग्य था। अनेक स्थानोंपर कारीगर आजकल चरखा बनानेमें कला-कौशलका जितना प्रयोग कर रहे हैं उतना सम्भवतः किसी दूसरी वस्तुको बनानेमें नहीं किया जा रहा है। मेरी भगवान्से प्रार्थना है कि हम आगामी कांग्रेस और उसके अन्तर्गत होनेवाली खादी और चरखा प्रदर्शनीको आदर्श बना सकें।

सरखेज और साणंद

जहाँ पहलेसे ही कार्य किया गया हो, जहाँ थोड़े ही लेकिन दिलसे काम करनेवाले कार्यकर्त्ता हों उसमें और जहाँ पहलेसे काम न किया गया हो उसमें क्या फर्क होता है उसका अनुभव सरखेज और साणंदमें हुआ। सरखेजमें लगभग दो हजारकी आबादी से एक घंटे में करीब १,२०० रुपये इकट्ठे हुए और साणंद जहाँ पाँच हजारकी बस्ती है तथा जहाँ अच्छा व्यापार है वहाँ सिर्फ पाँच सौ रुपये ही इकट्ठे हुए। सरखेजमें राष्ट्रीय स्कूल है। सरखेजकी सभामें अत्यन्त शान्ति थी, स्त्री और पुरुष समान संख्या में उपस्थित थे और दोनोंके लिए एक ही सभासे काम चल सका। साणंदमें दो अलग-अलग सभाएँ की गई। दोनोंमें शोरगुल और अव्यवस्थाकी सीमा न थी। सरखेजको