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मेरे-जैसे रोगीके लिए कुर्सीकी व्यवस्था की जाती है। इसे बदलकर हमें प्राचीन चौकीको अपनाना चाहिए। जहाँ सब लोग जमीन अथवा मंचपर बैठे हों वहाँ सबके बीच एक कुर्सी तनिक भी शोभा नहीं देती। हमें यह सिद्ध कर देना चाहिए कि कुर्सी सम्मानकी द्योतक नहीं है। एक स्थानपर कुर्सीके कारण कुछ गलतफहमी हो गई थी। वहाँ दो ही कुर्सियाँ थीं, एक वक्ता के ― मेरे लिए और दूसरी अध्यक्ष के लिए। सभा शुरू होनेके थोड़ी देर बाद एक अपरिचित सज्जन सभामें आये। सब नीचे ही बैठे हुए थे लेकिन इन सज्जनको लगा कि अगर वे जमीनपर बैठेंगे तो अपना अपमान स्वयं ही करेंगे। मैं समझ गया। उनके नीचे बैठनेमें अपमानकी कोई बात नहीं, इस बातको समझाना मुझे व्यर्थ जान पड़ा। मैं तुरन्त मेजपर बैठ गया और मैंने अपनी कुर्सी खाली कर दी। यदि मेरे लिए भी चौकी होती तो उपर्युक्त दिक्कत सामने ही न आती। बात छोटी-सी है लेकिन है सारगर्भित। स्वयंसेवकोंने व्यवस्था आदि ठीक ही की थी। भाई पुराणीकी शिक्षाका प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता था। तथापि उनमें अभी और अधिक कार्यदक्षताकी आवश्यकता है, ऐसा मुझे जान पड़ा। उनमें शोरगुलको बन्द करवानेकी समझ कम थी। दल बाँध-कर खड़े होने की आदत भी दिखाई पड़ी। वे बालकोंके प्रति कदाचित् कम विनयशील थे। जिस राष्ट्रके लोग अपने बच्चोंका, अपनी स्त्रियोंका और अपने सेवकोंका सम्मान नहीं करते उस राष्ट्रकी सभ्यता नष्ट हो जाती है। जनताकी सेवा करनेवालों को तो धर्म मानकर दुर्बलकी रक्षा करनी चाहिए, उन्हें मान सहित सम्बोधित करना चाहिए और उनके लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए।

स्वयंसेवक तो खादी के अलावा कोई और कपड़ा नहीं पहन सकते। परिषद् आये हुए बहुतेरे प्रतिनिधियोंने विदेशी वस्त्र पहने हुए थे। यह दृश्य खेदजनक था। अब तो स्वदेशीकी प्रतिज्ञाको नौ मास हो गये हैं, तथापि प्रतिनिधि भी विदेशी कपड़े के मोहको न छोड़ें, खादीके बोझसे घबराएँ अथवा उसमें शर्म महसूस करें तो यह नदीमें आग लगने के समान हुआ। उसे कौन बुझाये? मैं जानता हूँ कि पगड़ी और धोतीके बारेमें बड़ी मुश्किलें दिखाई देती हैं। लेकिन विचारपूर्वक इन दोनों बातों में परिवर्तन किया जा सकता है। महीन धोती पाँच गजकी होनी चाहिए। मोटी धोती साढ़े तीन गजकी भी चल सकती है। महीन ५४ इंच पनेकी होनी चाहिए तथा मोटी पैंतालीस इंच पनेकी। खादीको रँगवाकर उससे पगड़ी बनाना कोई मुश्किल बात नहीं है। लेकिन अगर ऐसी पगड़ी बोझीली जान पड़े तो जबतक महीन खादी तैयार नहीं होती तबतक खादीकी टोपीसे ही गुजारा करना चाहिए।

आगामी कांग्रेसके समय गुजरातमें खादीके अलावा और कोई चीज नजर न आये, यह हमारे लिए स्पृहणीय है। उससे क्या गुजरात कुछ खोयेगा? बल्कि उससे तो गुजरातके गरीबोंके घर सम्पन्न होंगे। जो व्यक्ति एक गज खादी खरीदता है वह गरीबके घरमें कमसे-कम तीन आने देता है। जहाँ खादीमें इतनी अधिक शक्ति निहित है वहाँ कोई भी व्यक्ति खादी पहने बिना कैसे रह सकता है? खादीमें कितना स्वदेशाभिमान समाया हुआ है यह तो सोच-समझकर खादी पहननेवाला व्यक्ति ही जानता है।