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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कम सदुपयोग तो करें। अभी तो वे जिस तरहसे पैसेका उपयोग कर रहे हैं अगर वैसे ही करते रहे तो हिन्दुस्तान बिलकुल बैठ जायेगा। मैं ऐसा नहीं चाहता। लेकिन आप तो ऐसा ही रास्ता अपनाये बैठे हैं। मैं स्वयं मिल-मालिक होता तो आपको बता देता कि आप मुझे कभी गुलाम नहीं बना सकते। अभी तो वे आपके सामने बकरी बन गये हैं। आप दोनों ऐसे अवसरकी तलाशमें हैं जब आप दोनों परस्पर एक दूसरेको कुचल सकें। आप दोनों वर्ग एक दूसरेसे डरते हैं और इसीसे आप नहीं चाहते कि आप मिल मालिकोंसे माफी माँगें और उन्हें सिर उठानेका अवसर मिल जाये।

अली भाइयोंने जो क्षमा माँगी मैं आपसे उसके बारेमें बात करना चाहता हूँ। उन्होंने क्या यह क्षमा जेल न जानेकी खातिर माँगी है? अली भाई कोई जेल जानेसे नहीं डरते। हम तीनों जने इस वर्ष फाँसीपर चढ़ने की बात कह रहे हैं। तब क्या यह क्षमा उन्होंने अपने लिए माँगी? नहीं, यह क्षमा उन्होंने खिलाफत के प्रति न्यायकी खातिर माँगी है, भलमनसाहतसे काम करनेवालों के लिए माँगी है। मैंने उनसे कहा था कि आपके भाषण में कटुता है। आपके भाषणका कोई यह अर्थ भी लगा सकता है कि आप हिंसा करवाना चाहते हैं। उन्होंने मेरी नम्र सलाह मानी और उन्होंने शुद्ध हृदयसे सारे हिन्दुस्तानको बता दिया कि हम हिंसा नहीं चाहते। ये दोनों भाई जानते हैं कि अमन और तलवारके बीच कोई मेल नहीं हो सकता। वे कहते हैं कि तर्के-मवालातसे अगर खिलाफतके प्रश्नका सन्तोषजनक हल नहीं निकलता तो हम तलवार खींचकर या तो खुद मर जायेंगे या दुश्मनकी हत्या कर देंगे और इस तरह खिलाफत के प्रश्नका निर्णय करेंगे। मेरा अपना धर्म मुझे तलवार खींचनेसे मना करता है। मैं किसीकी हत्या नहीं करना चाहता। हिन्दू धर्मको बचाते हुए मैं मर भले ही जाऊँ लेकिन किसीको मारूँगा नहीं। मेरे और अली भाइयोंके बीच इतना फर्क होने के बावजूद मैं उन्हें यह समझा सका हूँ कि अभी तलवार न खींचना हमारा कर्त्तव्य है। इन्होंने माफी माँगी है सो जेलसे बचनेके लिए नहीं। दिलपर अंकुश न रखकर जेल जाना पाप है। हम पवित्र बनें, बलिदान करें और फिर यदि अत्याचारी हमें जेल भेजे तो दुनिया उसपर थूकेगी। जो पवित्र व्यक्तिको फाँसीपर चढ़ाता है वह सारी दुनियाके तिरस्कारका पात्र होता है। हम तो चाहते हैं कि हम सरकारके हाथोंमें जायें और सर- कार हमें फाँसी पर चढ़ाये। अली भाइयोंकी इस माफी माँगनेका अगर अहमदाबादमें दूसरा अर्थ किया जाता है, हिन्दुस्तानमें दूसरा अर्थ किया जाता है तो अहमदाबाद भूलता है, हिन्दुस्तान भूलता है। दिन-ब-दिन हममें भलमनसाहत जड़ पकड़ती जाती है। आप शिक्षित बनें, सज्जन बनें। कोई बात अगर आपको अच्छी नहीं लगती और अपनी नापसन्दगी जाहिर करनेके लिए अगर आप उसका विरोध करते हैं तो यह एक जुदा बात है। लेकिन अगर आप सीनाजोरी करते हैं तो यह बात कैसे सहन की जा सकती है। इस न्यायको अगर आप सीख लें तो खिलाफत और पंजाबके प्रति न्याय तथा स्वराज्य आपके हाथमें है।

मजदूरोंके लिए आज एक पत्रिका वितरित की गई है। तिलक स्वराज्य-कोष में चन्दा देना, कांग्रेसके रजिस्टर में अपना नाम दर्ज कराना और अपने घरोंमें चरखा चालू