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पत्र : रणछोड़दास पटवारीको


करना मजदूरोंका फर्ज है। घरमें चरखा दाखिल करनेका अर्थ यह हुआ कि आपने अकालके विरुद्ध बीमा करवा लिया है। मजदूरोंको मिलका कपड़ा नहीं पहनना चाहिए और उन्हें समझ लेना चाहिए कि मिलका कपड़ा तो कंगाल व्यक्तियोंके लिए है।

मैं अपने और अली भाइयोंके सम्बन्धमें दो शब्द कहना चाहता हूँ। हमारा सम्बन्ध एक माँसे जन्मे भाइयोंसे तनिक भी कम नहीं है। मैं १९१५ में जब दिल्ली गया तभी से उनके सम्पर्क में आया। उस दिनसे मैंने उनका साथ नहीं छोड़ा और वे भी मेरे आँचलको पकड़े रहे हैं। वे कट्टर मुसलमान हैं, मैं कट्टर हिन्दू होनेका दावा करता हूँ। वे नहीं चाहते कि मैं अपने धर्मसे विचलित होऊँ और मैं भी नहीं चाहता कि वे अपने धर्मको बिगाड़ें। अपने-अपने धर्मका पालन करते हुए भी हम ऐसी स्थिति में पहुँच गये हैं कि हम एक साथ फॉसीपर चढ़ने और मर मिटनेको तैयार हैं। हिन्दू धर्म और इस्लाम, दोनोंमें इतनी सज्जनता जरूर है।

अब मैं मौलाना साहब से प्रार्थना करता हूँ कि वे आपको जो सन्देश देना चाहते हैं स्वयं अपने मुखसे दें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १६-६-१९२१

१०१. पत्र : रणछोड़दास पटवारीको[१]

१३ जून, १९२१

आदरणीय भाई रणछोड़दास,

आप अन्त्यजों सम्बन्धी मेरे विचारोंसे भले ही सहमत न हों लेकिन अगर आप चरखे के प्रसार और शिक्षाके अर्थ तिलक स्वराज्य-कोषमें चन्दा दें और दूसरोंसे भी देनेके लिए कहें तो अच्छा होगा। आपसे तो बहुत आशाएँ रखता हूँ। आपने जो लेख लिखा है, चिरंजीव छगनलालने वह मुझे दिखाया था, लेकिन मैं उसे पढ़ नहीं पाया हूँ। अवकाश मिलनेपर पढ़ेगा।

मोहनदास के प्रणाम

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २७९७) की फोटो नकल तथा (जी० एन० ४११५ से भी। सौजन्य: पटवारी परिवार

  1. गोंडल के दीवान।