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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


योजना बनाने के प्रश्नपर उसी बैठकमें विचार किया जा सकता है। मेरी रायमें अभी उसके लिए उपयुक्त समय नहीं आया है।

आपका विश्वस्त,

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ७५४८ ) की फोटो नकलसे।

११३. भाषण : बम्बई में स्वराज्यपर[१]

१९ जून, १९२१

श्री गांधीने कहा कि घंटे भरसे अधिक हो गया आप लोग मंडपमें बैठे हुए हैं। इस पंडालको तैयार करनेमें स्थानीय गरीब-अमीर सभीने योग दिया है; इसके लिए में आपको धन्यवाद देता हूँ। निश्चय ही इस तरह मिलकर काम करनेमें मुझे स्वराज्य की पक्की बुनियाद दिखाई देती है। मेरे स्वागतमें आपने जो कुछ किया है। उस सबके लिए भी में आपका आभारी हूँ। मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि कोषके लिए चन्दा करनेमें सभी वर्गों और जातियोंने हिन्दुओं, मुसलमानों और पारसियोंने हिस्सा लिया है। यही स्वराज्यकी कुंजी है। में अपने भाइयों और बहनोंसे अपील करता हूँ कि कोषके लिए आप लोग और भी जो कुछ देना चाहें, मुझे दें। भारत एक धर्मराज्य और नीतिराज्यकी स्थापनाके लिए प्रयत्नशील है। भारतके लोगोंने ईमानदारीसे सही रास्तेपर चलनेका संकल्प कर लिया है। मुझे बहुत खेद है कि में सभा में बहुत देरसे आया। मेरी मोटर रास्तेमें बिगड़ गई थी; इसके अतिरिक्त मुझे मांडवी वार्डकी ओरके श्री वेलजी लखमसी नापूसे ६०,००० रुपये भी लेने थे। आशा है कि विले पार्लेके निवासी भी तिलक कोषके लिए इतनी ही रकम देंगे।

इसके बाद गांधीजीने पारसियोंकी सभाका जिक्र करते हुए वहाँ पूछे गये प्रश्नों का उल्लेख करते हुए कहा कि मैं यहाँ कई मुद्दोंको अधिक विस्तारसे समझाऊँगा। मुझे बताया गया है कि २३ करोड़ हिन्दुओं और सात करोड़ मुसलमानोंमें एकता है; किन्तु उनके बीच रहनेवाले ८०,००० पारसियोंकी हालत खराब रहेगी। जो जातियाँ बहुसंख्यक हैं उनका कर्त्तव्य है कि अल्पसंख्यकोंके हितोंकी रक्षा करें, और उनका संरक्षण करें। स्वराज्यका पहला सिद्धान्त यही है। इसे आपको ध्यान में रखना है। बहुसंख्यक लोगोंको अल्पसंख्यकोंके हितोंकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। एक बोहरा सज्जनने मुझे लिखा है कि में केवल मेमन लोगोंका नाम ले रहा हूँ, बोहरोंका नहीं। उन्होंने मुझसे पूछा है कि क्या में बोहरा लोगोंपर सन्देह करता हूँ। इसके बारेमें में इतना ही कहूँगा कि मेरा यह मतलब हरगिज न था। मैने मेमन शब्दका प्रयोग समस्त मुस्लिम समाजके लिए किया था न कि किसी वर्ग विशेषके लिए। में इसी

  1. उत्तरी बम्बईके एक उपनगर विले पार्लेमें, जहाँ गांधीजीको तिलक स्वराज्य-कोषके लिए एक थैली भेंट की गई थी।