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तिलक स्मारक-कोष


केवल एक करोड़ रुपये जमा करनेमें कोई परेशानी नहीं होगी, वरन् एक महीने के भीतर स्वराज्य लेना भी सुनिश्चित हो जाये। आज यदि वे करोड़ों रुपये कमा रहे हैं तो अरबों देशसे बाहर भी भेज रहे हैं, अर्थात् वे अपने गरीब और बहुतसे भूखों मरते देश-भाइयोंके मुँहका ग्रास छीनकर खुद करोड़ों रुपये जमा कर रहे हैं, और अरबों रुपये देशसे बाहर भेजने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। मोटी-मोटी तनख्वाहें पानेवाले उच्चाधिकारियोंके भारसे दबा यह शासन इस खयालमें कि और कोई उपाय न रहनेपर, डायरशाही और ओ डायरशाही के बलपर भारतको कब्जे में रखा जा सकता है, सेनापर कमरतोड़ खर्च किया जा रहा है, और जिस वर्गसे आज इस शासनको सबसे अधिक सहारा मिल रहा है, वह इन्हीं धनिकोंका वर्ग है।

परन्तु जैसी वस्तुस्थिति हो, हमें उसे उसी रूपमें लेना चाहिए। धनी लोग कलक्टरों और कमिश्नरोंको नाखुश करनेसे डरते हैं। कुछ लोग वास्तवमें असह्योग आन्दोलनकी सफलतासे डरते हैं। वे समझते हैं कि यदि यह सफल हो गया तो कमसे-कम कुछ समयके लिए तो अराजकता फैल ही जायेगी और जान-मालकी हानि होगी। हमें उनके हृदयपर विजय पानी है और इसका तरीका यही है कि हम अत्यन्त धैर्यपूर्वक काम करते जायें और इस तरह ऐसा वातावरण तैयार करें कि कोई भी व्यक्ति मन, कर्म या वचन किसी भी प्रकारसे हिंसा न करे।

इस बीच, हमें यह समझ लेना है कि यदि इस कसरको पूरा करना है तो जो थोड़े-से धनी और बहुत-से अच्छे खाते-पीते लोग हमारे साथ हैं, उन्हें साधारणसे अधिक कुर्बानी करनी पड़ेगी। बम्बईमें इस दृष्टिसे बड़े अच्छे ढंग से काम शुरू हुआ है। वहाँ बड़े ही ईमानदार कार्यकर्त्ता, जो स्वयं धन-सम्पन्न हैं, रात-दिन एक करके बड़ी-बड़ी रकमें जमा कर रहे हैं। उन्हें बड़े-बड़े उतार-चढ़ावोंका सामना करना पड़ रहा है। लेकिन वे अदम्य उत्साहसे अपने सीधे रास्तेपर आगे बढ़ते जा रहे हैं।

हमें किसीके कहे बिना काम न करनेकी आदत छोड़ देनी चाहिए। बम्बईके धनी लोग स्वेच्छा से अपनी सहायता और भेंट क्यों नहीं भेजते? वे इस बातका इन्तजार क्यों करते रहते हैं कि पहल कोई और करे?

और उनका क्या होगा जो स्वयं लाख-लाख अथवा हजार-हजार रुपये नहीं दे सकते? वे थोड़ेसे धनवान व्यक्तियोंका बोझ कम करनेके लिए काफी कुछ कर सकते हैं। उन्हें तो समाजके आह्वानकी राह नहीं देखनी चाहिए। प्रत्येक समूह, प्रत्येक जाति और प्रत्येक व्यापारिक संगठनको अपने-आप धन जमा करने और जमा हुए धनको प्रान्तीय केन्द्रोंको भेजनेका काम शुरू कर देना चाहिए। जिन लोगोंमें धन जमा कर सकनेकी कुछ भी योग्यता है, उन्हें बाकीके दिनोंमें अन्य कोई काम न करके सारे समयका उपयोग इसी कामके लिए करना चाहिए।

यह बड़े शर्म की बात है कि सब प्रान्तोंसे कुल मिलाकर चालीस लाख रुपये से अधिक धन जमा करना सम्भव नहीं है परन्तु यदि प्रत्येक प्रान्त उस गौरवपूर्ण और सौभाग्यपूर्ण सप्ताह में ऐसे निःस्वार्थ भाव से काम करनेवाले कार्यकर्त्ता तैयार कर सके जो धन जमा करनेमें अपनी पूरी शक्ति लगा दें तो अब भी इस कलंकको धो सकनेका समय है।