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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


तमाम धनवान व्यक्ति अभी चन्दा नहीं दे रहे हैं और हम जन-साधारणसे चन्दा जमा करनेका काम संगठित करनेमें भी सफल नहीं हुए हैं, इसका अनिवार्य परिणाम यह होगा कि कुछ लोगोंको अपना सब कुछ दे देना होगा। मैं ऐसे चार गुजरातियोंको जानता हूँ, जो स्वयं जाने-माने और योग्य कार्यकर्त्ता भी हैं, जिन्होंने अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया है। एकका स्वर्गवास हुआ तो वे अपनी कुल जमा-पूंजी, २५,००० रुपयेसे अधिक, स्वराज्य-कोष के लिए छोड़ गये। मुझे आशा है कि इन चार दृष्टान्तोंका बड़ी संख्या में अनुकरण किया जायेगा। स्वतन्त्रताके यज्ञमें आहुति डालनेसे किसीकी कुछ हानि थोड़े ही होती है।

हमें यदि इसी वर्ष के दौरान स्वराज्य प्राप्त करना है तो इसके लिए कमसे कम बेजवाड़ा कार्यक्रमको नियत समयके भीतर अवश्य पूरा कर लेना होगा। एक करोड़ रुपयोंका संग्रह उसकी पूर्तिका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण होगा।

सदस्यता और चरखेका महत्त्व भी कम नहीं। मेरा यह सुझाव है कि केवल कांग्रेसकी नीति और सिद्धान्तोंकी व्याख्या करनेके लिए इक्कीस सालसे अधिक उम्र के हर स्त्री-पुरुषको किसी एक मूल कांग्रेस कमेटीका सदस्य बननेकी बात कहनेके लिए रविवार, २६ तारीखको और ३० जूनको यथासम्भव प्रत्येक गाँव अथवा केन्द्र में सभाएँ की जायें। इन सभाओं में सदस्य बनाने और सदस्यताका शुल्क जमा करनेके अलावा और कोई काम न किया जाये। इन दिनों ऐसे सभी स्थानोंपर फार्म भी जमा कराये जा सकते हैं जहाँ जिम्मेदार लोग सदस्य बनाने के लिए प्रचार कार्य प्रारम्भ करने के लिए तैयार हों।

चरखों की कोई गिनती तो हमारे पास नहीं है, लेकिन मुझे जो विवरण मिले हैं, उनसे प्रकट होता है कि शायद जनसाधारण के बीच चरखेका इतना अधिक प्रचलन हो गया है कि भारत-भरमें बीस लाख चरखोंपर, येन-केन ही सही, कताईका काम चल रहा है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २२-६-१९२१

१२१. युद्धोन्मुख डा० पॉलेन

डा० जॉन पॉलेनकी खुली चिट्ठी मुझे मिल गई है। यहाँ मैं उसे इसलिए नहीं दे रहा हूँ कि वह समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हो चुकी है। चिट्ठी हर तरहसे डा० पॉलेन के अनुरूप है। उन्होंने असहयोग आन्दोलनका अध्ययन करने, उसे समझनेकी थोड़ी भी तकलीफ गवारा नहीं की। लेकिन असहयोगके बारेमें कुछ न जानते हुए भी उसे खरी-खोटी सुनाने में उन्होंने कोई हिचक महसूस नहीं की। उनका आग्रह है कि मैं अपने खुदके अनुभवको एक तरफ रखकर उनके ही शब्दोंको ठीक मान लूँ। यह अफसोसकी बात है कि डा० पॉलेनकी चिट्ठीमें भी हमें आम अंग्रेजों-जैसा ही रुख दिखाई पड़ता है; अर्थात् वे प्रश्नके दूसरे पहलूको जानने-समझनेकी तकलीफ नहीं