पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४४०

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४०८ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय आशा है कि इस पत्रका लेखक, चाहे वह कोई भी हो और कहींका भी हो, मेरी इस टिप्पणीको देख लेगा। लेखकने दिखाई तो मित्रता है; किन्तु काम शत्रुताका किया है। इस तरह गालियाँ देकर या धमकियाँ देकर हम खिलाफत या स्वराज्यके आन्दो- लनको गति नहीं दे सकते। यदि हम खिलाफत या स्वराज्यके आन्दोलनको गति देना चाहते हैं तो हमें सभ्यता और नम्रता सीखनी चाहिए। 'प्रजामित्र' के सम्पादक हमारे मतका चाहे जितना विरोध करें, इसमें उनको कुछ भी दोष कैसे दिया जा सकता है ? यदि अखबारोंको आलोचनाका अधिकार न हो तो उनकी कोई कीमत नहीं रहती। सरकारने अखबारोंपर जो प्रतिबन्ध लगा रखे हैं, जब हम उनको भी हटानेकी माँग करते है तब यदि लोग धमकाकर जो दबाव डालना चाहते हैं, उसे हम बरदाश्त कर सकेंगे? हम किसी भी मनुष्यके मतको या मनको प्रेमसे, तर्कसे और अपने उदाहरणसे बदलनेका प्रयत्न कर सकते हैं। हम किसीके भी मनको धमकियां देकर कभी नहीं बदल सकते। इसलिए प्रत्येक मनुष्यको और विशेष रूपसे असहयोगियोंको अपनी जीभको और अपने विचारोंको सुधारना चाहिए और उन्हें नरम बनाना चाहिए। जिसकी जीभपर खुदा या ईश्वरका नाम शोभित हुआ है, जिसके हृदयमें ईश्वरका वास रहा है, उसकी जीभपर या उसके हृदयमें मलिन भाव एक घड़ी या पल-भर भी कैसे टिक सकता है ? जो व्यक्ति असहयोगियोंके दलमें मैली जीभ या मलिन हृदय लेकर प्रविष्ट होता है, वह मित्र होनेका दावा करनेपर भी राष्ट्र के और मेरे प्रति शत्रुका काम करता है। अस्पृश्यताकी मर्यादा इस लेखके सम्बन्धमें मेरा एक शब्द भी लिखना आवश्यक नहीं है। शास्त्रीजीने अस्पृश्यताकी जो व्याख्या की है उस व्याख्याके विरुद्ध मैने कुछ नहीं कहा। गन्दे लोगोंका स्पर्श करके हम सदा स्नान करते हैं। मैंने कठोर भाषाका जो प्रयोग किया है वह केवल इस प्रचलित अस्पृश्यताके विरुद्ध किया है जिसके मूलमें द्वेषके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है। यदि शास्त्रीजीके जैसे विचार सभी वैष्णवोंके हों तो ऐसे वैष्णवोंसे तो मुझे कुछ भी कहनेकी जरूरत न होगी। [गुजरातीसे] नवजीवन, १७-७-१९२१ १. यह टिप्पणी वसन्तराम शास्त्रीके इस सम्बन्धमें लिखे गये लेखके साथ दी गई थी। Gandhi Heritage Porta