पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/५२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२४१. पत्र : महादेव देसाईको

लखनऊ जाते हुए
रविवार [७ अगस्त, १९२१][१]

भाईश्री महादेव,

लखनऊ पहुँचनेसे पहले यह पत्र लिख रहा हूँ। वहाँ[२] बुधवारके प्रातः पहुँचकर उसी रातको आरा रवाना हो जाना है।

मैं जोज़ेफकी गिरफ्तारीकी खबर मिलनेकी राह देख रहा हूँ। मुझे लग रहा है कि रंगा अय्यर अकेले नहीं रहने चाहिए।

लोगोंकी जय-जयकारसे तंग आ रहा हूँ।

मेरे लिए पेड़े, सोडा पड़ी पूड़ियाँ और मीठी टिकियाँ (गोल पापड़ी) बन सकें तो बनवा लेना। इस बार यात्रामें मेरे पास पेड़े ही हैं और उनके भी समाप्त होनेकी सम्भावना है। और सफर लम्बा है। सम्भव है, वहाँ बकरीके दूधसे बनाया हुआ घी सुगमतासे न मिल सके। पेड़े ही बन सकें तो भी ठीक है। हर जगहसे टोपियाँ खूब मिल रही हैं।

वालजीको[३] तुम्हें 'यंग इंडिया' के प्रूफ भेजनेके लिए लिख दिया है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ ११४२१) की फोटो-नकलसे।

 

२४२. भाषण : लखनऊमें[४]

७ अगस्त, १९२१

महात्माजीने अपने भाषणमें अहिंसात्मक असहयोग तथा हिन्दू मुसलमानोंकी एकतापर अधिक जोर दिया। उन्होंने कहा कि मैं आप लोगोंसे इतना ही कहता हूँ कि किसी प्रकारका असन्तोष तथा उद्दण्डता हम लोगोंके मन्तव्यमें बाधक होगी। विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार ही खिलाफतकी बुराइयोंको हटाने तथा अंकाराकी मददके लिए एकमात्र

  1. गांधीजी अलीगढ़से इसी दिन लखनऊ पहुँचे थे और उस दिन रविवार था।
  2. इलाहाबाद।
  3. वालजी गोविन्दजी देसाई, कुछ समयतक गुजरात कालेज, अहमदाबादमें अंग्रेजीके प्राध्यापक; नौकरीसे त्यागपत्र देकर गांधीजी के साथ हो गये। गांधीजीकी अनेक पुस्तकोंके अनुवादक।
  4. अमीनुद्दौला पार्कमें आयोजित सार्वजनिक सभामें। सभामें लगभग एक लाख लोग थे। मौलाना मुहम्मद अली भी उपस्थित थे।