पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९
बाजी लगानेकी लत

घुड़दौड़के बारेमें मैं कुछ भी नहीं जानता। आमतौरपर इसके साथ जिस तरहकी चीजें जुड़ी रहती हैं मैं उनकी छायासे भी डरता हूँ। इतना मैं जरूर जानता हूँ कि घुड़दौड़के मैदानमें जानेवाले बहुत से लोग तबाह हो गये हैं।

लेकिन मैं स्वीकार करता हूँ कि इसके खिलाफ कलम उठानेकी हिम्मत मैं अभीतक नहीं कर पाया था । यह देखकर कि आगाखाँ-जैसे धर्मगुरु, अनेक महन्त और महाधिपति, वाइसराय और देशके सर्वश्रेष्ठ माने जानेवाले लोग घुड़दौड़की सरपरस्ती कर रहे हैं, उसपर हजारों रुपये बहाते हैं, अतः मैं सोचा करता था कि उसके खिलाफ लिखना बेकार होगा। लेकिन एक पत्रकार और सुधारकके नाते, जिन बुराइयोंके खिलाफ जनमत तैयार किया जा सके, उनकी ओर लोगोंका ध्यान खींचना मेरा कर्त्तव्य है। [ चेचकका | टीका लगवाना मैं बुरा समझता हूँ, फिर भी इस बुराईकी ओर लोगोंका ध्यान खींचना मैं अपनी शक्तिका अपव्यय ही मानता हूँ। यह भी स्वीकार करना मेरा कर्त्तव्य है कि शुद्धीकरणके इस आन्दोलनमें शराबबन्दीको शरीक करनेकी भी मेरी हिम्मत नहीं हुई थी। वह बात तो अपने आप ही आन्दोलनमें आ जुड़ी। लोगोंने खुद-ब-खुद उसे आन्दोलनमें शामिल कर लिया है।

बिना उपदेश या मार्गदर्शनके ही लोग अपने आप बहुतसे व्यसनोंको छोड़ रहे हैं, यह इस बातका पक्का लक्षण है कि असहयोग आन्दोलन शुद्धीकरणका आन्दोलन है। घुड़दौड़ में बाजी लगाने के बारेमें भी इसी आशासे मैंने उपर्युक्त पत्र प्रकाशित किया है।

मैं जानता हूँ कि अगर घुड़दौड़के मौजूदा तरीकेमें कुछ रद्दो-बदल कर दी जाये तो उससे लेखिकाको सन्तोष हो जायेगा; लेकिन असली इलाज तो इस बीमारी-को जड़से मिटाकर ही हो सकेगा, और जरूरत भी इसी बातकी है। घोड़ोंपर बाजी लगाना भी जुआ ही है। अगर लोग असहयोग करें तो यह व्यसन, यह बुराई आप ही मर जायेगी ।घुड़दौड़के मैदानमें जानेवाले हजारों आदमी वहाँ सिर्फ मजेके लिए जाते हैं। लोग वहाँ घोड़ोंको बेदम दौड़ते हुए देखनेके लिए जाते हैं या फिर इसलिए कि वहाँ जाना फैशनमें शुमार है, लेकिन जो भी हो; वे बाजी लगानेवालों की तबाहीको बढ़ावा देते हैं और उसमें मदद तो करते ही हैं।

शराबखोरीके मुकाबले घोड़ोंपर बाजी लगानेके व्यसनसे पेश पाना जरा टेढ़ी खीर है। जब कोई व्यसन फैशन ही नहीं बन जाता बल्कि बड़प्पन भी समझा जाने लगता है तो उससे निपटनेमें काफी लम्बा समय लगता है। रेसमें बाजी लगाना फैशनमें शुमार तो होता ही है, पर उसे किसी तरहका दुर्गुण या बुरा काम भी नहीं माना जाता । सौभाग्यसे शराबखोरीके साथ यह बात नहीं है। शराब पीनेको निश्चित बुराई न सही, आदमीकी कमजोरी तो माना ही जाता है। हर धर्मने शराब पीनेकी कमोबश सख्तीके साथ बुराई की है। लेकिन घोड़ोंपर बाजी लगानेकी बातका कहीं ऐसा उल्लेख नहीं है। ऐसी सूरतमें हम आशा करते हैं कि जागरूक लोग घुड़दौड़के मैदानमें जानेके बदले अपने लिए कोई दूसरा अधिक निर्दोष मनोविनोद ढूंढ़ निकालेंगे, और इस तरह रेसके मैदानमें होनेवाली जुआखोरीके बारेमें अपनी नापसन्दगी जाहिर करेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २७-४-१९२१

२०-४