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पारसियोंके प्रति मैं क्यों आशावान हूँ?

ईश्वर तो हमें सजा अभी दे रहा है। अकाल, संकट, प्लेग, हैजा, राज्यके अत्याचार--इन सबसे बढ़कर और क्या क्लेश हो सकता है ? इसीलिए मैं हिन्दू-समाजसे अनुरोध करके कहता हूँ कि हिन्दुत्व अस्पृश्यताका पोषण करनेमें नहीं, उससे छुटकारा पाने में है।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ८-५-१९२१

३३. भाषण : महिलाओंकी सभा, कठलालमें'

४ मई, १९२१
 

धर्मको बनाए रखना न तो ब्राह्मणोंके हाथमें है और न पुरुषोंके । वह तो स्त्रियों-के ही हाथमें है। समाजका आधार-स्तम्भ घर है और धर्मका विकास घरमें होता है । घरकी गन्ध समस्त समाजमें फैलेगी। किसी भी शहरमें व्यापार चाहे कितने ही जोरों-पर क्यों न हो, उस शहरकी चाहे कितनी ही आबादी क्यों न हो लेकिन अगर वहाँ घर अच्छे न हों तो मैं तुरन्त कहूँगा कि यह नगर अच्छा नहीं है। स्त्रियाँ घरकी देवी हैं। वे यदि धर्मका पालन न करें तो जनताका सत्यानाश हो जाये । श्रीकृष्णने यादव-कुलका संहार किया था। और उसका कारण यही था कि यादवोंकी स्त्रियाँ व्यभिचारिणी हो गई थीं, वे अपने धर्मको भूल गई थीं। इसलिए मैं आपसे पवित्र होकर धर्मका पालन करनेके लिए कहता हूँ और पवित्र होनेपर आपसे यह आशीर्वाद माँगता हूँ कि मुझे तथा मौलाना शौकत अलीको अर्थात् हिन्दुओं और मुसलमानोंको स्वराज्यकी, धर्मकी इस लड़ाईमें यश मिले ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ८-५-१९२१

३४. पारसियोंके प्रति मैं क्यों आशावान हूँ ?

पारसी जबसे हिन्दुस्तानमें आये हैं तभीसे उन्होंने हिन्दुओंके साथ की गई अपनी शर्तोंका भलमनसाहतके साथ पालन किया है ।

जब बम्बईमें सब लोगोंके मुँहपर ताला लगा हुआ था तब पारसियोंने ही मुंह खोला था ।

पारसियोंने गुजरातकी जो सेवा की है वह सदैव याद रहेगी। खबरदार और मलबारी' जैसे पारसियोंने गुजराती भाषाकी भी कम सेवा नहीं की है ।

१. गांधीजीको पात्राके विवरणसे उद्धृत ।

२. आर्देशिर फ्रामजी खबरदार (१८८१-१९५४) ।

३. बेहरामजी मेरवानजी मलबारी (१८५४-१९१२ ); कवि, पत्रकार और समाज-सुधारका