पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३५. एक पारसी बहनका पुरस्कार

जापानकी राजधानी याकोहामासे मेहरबाई भेसानिया नामक बहनने अत्यन्त प्रेमभरा पत्र लिखा है। वह कुछ दिनोंसे मेरे पास ही पड़ा हुआ है। इसके लिए मैं उस बहनसे क्षमा चाहता हूँ। इस पत्रको मैंने कुछ अर्सेके बाद पढ़ा। बादमें, प्रकाशित करूँ अथवा न करूँ इस दुविधामें तथा अन्य कार्योंमें व्यस्त रहने के कारण कोई निश्चय न कर सका।

पुरस्कार घोषित करनेसे अच्छे राष्ट्रीय गीत मिल सकते हैं या नहीं, यह बात मुझे विचारणीय प्रतीत हुई । तथापि अन्तमें मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा कि अत्यन्त शुद्ध भावनासे एक बहनके पत्रको प्रकाशित न करना मेरे लिए उचित नहीं है। इसलिए वह पत्र मैं नीचे दे रहा हूँ। मैंने उसमें से अपनेसे सम्बन्धित कुछ अंश निकाल दिया है, कुछ-एक शब्दोंको सुधारा है और अंग्रेजी वाक्योंका गुजरातीमें अनुवाद किया है। शेष पत्र मैं जैसेका-तैसा प्रकाशित कर रहा हूँ। दूर बैठी एक बहन इस धर्म-युद्धमें इतनी दिलचस्पी लेती है, यह हर्षकी बात है।

पुरस्कारके प्रलोभनसे तो नहीं लेकिन एक बहनने इतनी दूर बैठे हुए जो इच्छा प्रकट की है उसे मान प्रदान करनेकी खातिर अगर किसीको देवी सरस्वती प्रेरणा प्रदान करे और गुजरातके कवि इस दिशामें प्रयत्न करेंगे तो मैं उनका आभारी होऊँगा । सब कविताएँ तीस जूनके अन्ततक मिल जानी चाहिए। यदि एक ही विषयसे सम्बन्धित कोई बहुत अच्छी कविता हुई तो सारा पुरस्कार एक ही व्यक्तिको दे दिया जायेगा। लेकिन यदि एक भी कविता निश्चित स्तरकी न हुई तो पुरस्कार नहीं दिया जायेगा । परीक्षकका नाम मैं फिर प्रकाशित करूंगा ।'

[ गुजराती ]

नवजीवन, ५-५-१९२१

१. इसके बाद मेहरवाईका पत्र है जो यहाँ उद्धृत नहीं किया गया । इसमें उत्कृष्ट गीतोंके लिए ७५ रुपये के तीन पुरस्कारोंकी घोषणा की गई थी : पहला गीत वह जिसमें भगवान्के वे सब नाम आ जाते हों जिनसे उसे विभिन्न धर्मोके लोग सम्बोधित करते हों; दूसरा गीत वह जिसमें लोकमान्य तिलकके जीवनसे पाठ ग्रहण करनेकी बात कही गई हो; और तीसरा वह गीत जिसमें असहयोगियोंको अर्जुनसे तुलना करते हुए उसी तरह अपील की गई हो जिस तरह भगवान् श्रीकृष्णने भगवद् गीता में की है ।

२०-५