पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

भूमिका

प्रस्तुत खण्डमें २१ अगस्त १९२१ से १४ दिसम्बर १९२१, अर्थात् पाँच महीने की सामग्री संगृहीत है। "एक वर्षमें स्वराज्य" के कार्यक्रमको सफल बनाने के प्रयत्नका अन्तिम महीना सितम्बर था; इसलिए अगस्त में एक ऐसे जोरदार कार्यक्रमकी पृष्ठभूमि तैयार की जा रही थी जो सरकारको हिला दे सके और उसे लोकमतके आगे झुकनेपर विवश कर दे। गांधीजी स्वराज्यको किसी राजनीतिक अवस्थाकी बजाय एक आध्यात्मिक अवस्था ही अधिक मानते थे। किन्तु इस अर्थकी गहराई तक सबका पहुँच सकना सम्भव नहीं था। तमाम लोगोंको ऐसा लगता था कि गांधीजीने जब एक साल में स्वराज्य दिलाने की बात की है, तो किसी दिन अवश्य ही कोई बड़ा चमत्कार होगा और साल समाप्त होते न होते तक स्वतन्त्रता सामने आकर खड़ी हो जायेगी। तथापि गांधीजीको खटका था कि जो अवधि निश्चित की गई है, उसमें स्वराज्य की प्राप्ति कदाचित् सम्भव न हो सके और इसीलिए गुजरातके बारडोली और आनन्द जिलोंके चुने हुए अंचलों में सविनय अवज्ञा और सत्याग्रहकी तैयारीके बीच भी उनका मन परेशान बना हुआ था। इस खण्ड में एक ओर संघर्ष के अन्तिम दौरकी यह तैयारी और दूसरी ओर गांधीजीके मनकी बेचैनी उभरकर सामने आ जाती है।

गांधीजी देश में जिस शान्तिपूर्ण क्रान्तिको अवतारणा करना चाहते थे, उसके लिए जनताको अहिंसात्मक प्रशिक्षण देनेकी दृष्टिसे गांधीजीने समूचे देशकी "प्रदक्षिणा" प्रारम्भ की। पश्चिममें कराचीसे पूर्व में डिब्रूगढ़ तक और उत्तर में रावलपिण्डीसे दक्षिण में तूतीकोरिन तक इसी क्रान्तिको सुदृढ़ आधार देनेकी दृष्टिसे वे अनवरत यात्रा-रत रहे। जिन दिनों अपनी इस यात्राके दौरान वे असममें थे, उन्होंने अखबारों- में समाचार पढ़ा कि मलावार में एकाएक हिंसक काण्ड शुरू हो गया है। इतिहास में यह घटना मोपला काण्डके नामसे जानी जाती है। मोपला अरबोंके वंशज होते हैं। यह हमारे देश के दक्षिण पूर्वके समुद्री किनारे के एक छोटेसे टुकड़ेमें बस गये थे और राष्ट्रीय जीवनके मुख्य स्रोतोंसे उनका शताब्दियोंसे कोई सम्बन्ध नहीं था। एकाएक २० अगस्त १९२१को इन्होंने विद्रोह किया और “खिलाफत राज" की घोषणा कर दी। उन्हें खिलाफत आन्दोलनकी लगभग कोई खबर नहीं थी और अहिंसक असहयोगकी तो कल्पना थी ही नहीं। क्रोधमें अन्धे होकर उन्होंने अपने हिन्दू पड़ोसियों- पर हमले शुरू कर दिये और ऐसे जघन्य अत्याचार किये कि देशमें हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यके बढ़ते हुए पौदेकी जड़े हिल गईं। कुछ मुस्लिम नेताओंके रुखसे ऐसा जान पड़ा, मानो वे इन अत्याचारोंको तरह देना चाहते हों। परिस्थिति इससे और भी खराब हो गई। दक्षिण में हिन्दुओंकी भावनाओंका शमन करना गांधीजी के लिए कठिन हो गया। वे यह तो जानते थे कि मोपलोंने सन्तुलन खो दिया है, किन्तु उन्होंने हिन्दुओंसे अपील की कि वे अपना सन्तुलन न खोयें और मोपलोंकी गलतीको हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यकी जड़ें खोखली करनेका कारण न बनने दें। परिस्थितिने जो भयंकर स्वरूप