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५२. भेंट : 'मद्रास मेल' के प्रतिनिधिको[१]

[ १५ सितम्बर, १९२१]

[ प्रतिनिधि : ] "विदेशी वस्त्रके बहिष्कार आन्दोलनको यद्यपि उसमें मौजूदा विदेशी वस्त्रके स्टॉकका विनाश निहित है, क्या आप असहयोगका एक रचनात्मक कार्य मानते हैं?"

[ गांधीजी : ] मैं स्वदेशीको असहयोग आन्दोलनका एक रचनात्मक कार्य इसलिए मानता हूँ कि उसको अपनानेके फलस्वरूप हमारा देश अपनी जरूरत-भरका सारा कपड़ा हाथसे कात और बुनकर तैयार करने लगेगा।

श्री गांधी, क्या आप देशकी वर्तमान परिस्थितियोंको देखते हुए लोगोंकी जरूरतभरका पूरा कपड़ा तैयार होना सम्भव मानते हैं ?

निश्चय ही; जिस तरह हमारे लिए प्रतिदिनकी जरूरतका भोजन पका लिया जाना सम्भव है उसी तरह यह भी सम्भव है, बशर्ते कि कपड़ेका उत्पादन इसी तरह हमारे हाथमें हो जैसा सिर्फ दो या तीन सौ साल पहले था।

क्या अन्य कारणोंके अलावा, मशीनके प्रचलनसे परिस्थितियाँ काफी हदतक बदल नहीं चुकी हैं ?

वास्तवमें मशीनोंसे कोई ऐसा परिवर्तन नहीं हुआ है जो सुधारा नहीं जा सकता। मानसिक स्थितिको ही ठीक करना है। वे हाथ या वे सब घंटे जिन्हें राष्ट्र कपड़ा बनाने और सूत कातनेमें लगाता था, अब किसी अन्य अथवा बेहतर काममें लग रहे हैं सो बात नहीं है। वे घंटे और वे हाथ अब भी फालतू ही पड़े हैं।

क्या आपका खयाल है कि देशकी आवश्यकताको पूर्तिके लिए घरों और झोंपड़ियोंमें हाथ कताई और हाथ-बुनाई करके हम उतना ही माल और उसी कुशलताके साथ तैयार कर सकते हैं जितना कारखानों द्वारा तेजीके साथ तैयार हो जाया करता है ?

निश्चय ही !

दूसरे शब्दों में शायद आपका विचार यह है कि यह सवाल केवल इतना ही है। कि चन्द कारखानोंमें जो माल प्रचुर मात्रामें थोड़े ही समयमें बन जाता है वही माल ग्रामीण क्षेत्रों में हाथकी कताई और हाथकी बुनाई द्वारा तैयार करवाया जाये।

निश्चय ही ऐसा है।

क्या आप समझते हैं कि हमारी सभी आधुनिक जरूरतें पूरी तरह और कुशलताके साथ मशीनरीके प्रयोगके बिना पूरी की जा सकती हैं ?

जहाँतक कपड़े का सवाल है, आधुनिक जरूरतें अवश्य पूरी की जा सकती हैं, परन्तु संक्रमण कालमें राष्ट्रको तबतक सीमित मात्रामें सुलभ होनेवाले मालसे काम

  1. यह भेंट सान थोममें रामजी कल्याणजीके निवास स्थानपर हुई थी।