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६२. भाषण : कुम्भकोणम्में

१८ सितम्बर, १९२१

मित्रो,

मैं आपको इन सारे अभिनन्दन-पत्रों और उनमें व्यक्त की गई भावनाओंके लिए धन्यवाद देता हूँ। मुझे दुःख है और मैं जानता हूँ कि मौलाना मुहम्मद अली और उनकी बेगमकी अनुपस्थिति के कारण आप भी दुखी होंगे। खुश-किस्मती से मेरे साथ कानपुर के मौलाना आजाद सोबानी हैं। मैं समझता हूँ कि इस शोरगुलमें आप उनका व्याख्यान सुन सकने का अवसर शायद ही पायेंगे। यदि हम इसी साल स्वराज्य पाना चाहते हैं और खिलाफत तथा पंजाबके अन्यायोंका निराकरण कराना चाहते हैं तो उसके लिए तीन अनिवार्य शर्तें हैं।

वे हैं, एक तो हिन्दुओं और मुसलमानोंमें पूरी एकता। चन्द मोपलाओंके पागलपनसे भरे हुए कामोंके बावजूद दोनों ही जातियाँ अपने मधुर सम्बन्ध बनाये रहें।दूसरी शर्त अहिंसा और तीसरी शर्त स्वदेशी है। यह दुर्भाग्यकी बात है कि इस प्रान्त में स्वदेशीकी प्रगति सबसे कम हुई है। आप सब लोगोंको विदेशी वस्त्रका बहिष्कार अवश्य करना चाहिए और कताई-बुनाई शुरू कर देनी चाहिए। एक चौथी शर्त भी है जो हिन्दुओं को अवश्य पूरी करनी चाहिए और वह है, अस्पृश्यताका कलंक मिटाना। जबतक हम यह कलंक नहीं मिटाते, तबतक स्वराज्य पाना सर्वथा असम्भव है।

मैं जानता हूँ कि अस्पृश्यता के सम्बन्धमें मद्रास भारतके सभी भागोंसे अधिक बुरा है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि कुम्भकोणम् के लोग इस मामलेमें अपने यहाँ आवश्यक सुधार करने की सावधानी बरतेंगे। हम हिन्दू समाजके पाँचवें भागको समाजसे बाहर रखें और स्वराज्य पानेका दावा भी करें -- यह ठीक नहीं है। मैंने आपसे जिन शर्तोंका उल्लेख किया है, उन्हें पूरा करना आसान है और मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको और मुझे उन शर्तोंको भली प्रकार पूरा कर सकनेका विवेक और साहस दे।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १९-९-१९२१