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भाषण : त्रिचनापल्लीमें

प्रत्येक प्रतिष्ठित मुसलमानने जिसे मैं जानता हूँ, मोपलाओंके हरएक कामकी निन्दा की है। इसलिए हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रति हमारी निष्ठा दृढ़ और अडिग बनी रहनी चाहिए। इस आदर्श के प्रति हमारी निष्ठाको शायद किसी भी तरहका धक्का नहीं लगना चाहिए। हमें एक क्षणके लिए भी यह नहीं सोचना चाहिए कि यदि ब्रिटिश तलवार न होती तो मलाबारमें कभी शान्तिकी पुनःस्थापना नहीं हो सकती थी। सारे संसारमें जहाँ भी स्त्री-पुरुष बसते हैं, वे कभी-कभी आपस में लड़ बैठते ही हैं। कभी-कभी वे रक्तपात भी करते हैं, और आपेसे बाहर होकर पागलपन कर डालते हैं। परन्तु अपने झगड़े निबटाने में उन्हें कभी कोई कठिनाई नहीं हुई। जब पहला मोपला खूंरेजीपर उतारू हुआ था उस समय सरकार और उसकी पुलिस कहाँ थी ? ऐसी सरकारसे क्या लाभ जो केवल झगड़े हो जानेके बाद दण्ड देना तो जानती है लेकिन झगड़ेकी प्रारम्भिक अवस्थाओं में जीवन-रक्षा करना नहीं जानती। ऐसी सरकारसे क्या लाभ है जिसकी पुलिससे कभी जरा भी जोखिम उठानेकी आशा नहीं की जाती और जो एक जानके बदले हजारों जानें लेती है। ऐसी सरकारसे क्या लाभ जो बरसोंसे मोपलाओंका स्वभाव जानते हुए भी उन्हें शान्तिके मार्गपर नहीं ला सकी। और ऐसी सरकारसे क्या लाभ जिसने बेचारे हिन्दुओंको निःशस्त्र रखकर आत्मरक्षा कर सकने में बिलकुल लाचार बना दिया है। मैं जानता हूँ कि मोपला लोगोंके नजदीक अहिंसा अन्तिम आदर्श नहीं है, जैसा कि मेरा है। मोपला उपद्रवका अलीभाइयोंकी गिरफ्तारी से सम्बन्ध जोड़कर बम्बई सरकारने हमारी आँखोंमें धूल झोंकी है। भारतमें असहयोग के आरम्भसे पूर्व भी ऐसे उपद्रव सब जगह होते थे और उपद्रवकी आरम्भिक हालत में सरकार जान-मालकी रक्षा करनेमें असमर्थ होती रही है, जैसा कि तीन साल पहले शाहाबादमें जान-मालकी रक्षामें वह बुरी तरह असफल रही।[१] इसकी संरक्षण-शक्ति उस वक्त कहाँ चली गई थी जब, यदि मेरा खयाल ठीक है, लगभग एक हफ्ते तक या कमसे-कम ३-४ दिनोंतक मुसलमानोंके प्रति भयंकर क्रोधसे भरे हुए हिन्दुओं द्वारा गाँव-गाँव लूटे जा रहे थे ? इसलिए मैं आशा करता हूँ कि यह विशाल सभा मोपला उपद्रवसे यही एकमात्र सम्भव सबक ग्रहण करेगी कि अपने निश्चित कार्यक्रमसे हमें तिलभर भी नहीं डिगना है, प्रत्युत अपने प्रयासको दुगना करते हुए आगे बढ़ना है और इसी सालके अन्दर उसे पूरा भी करना है ताकि हम स्वराज्यकी स्थापना कर सकें।

मुझे पता चला कि एक थियेटर मैनेजरके मामलेमें उठ खड़े हुए एक किस्म के दंगे के सिलसिले में लगभग ४० आदमी गिरफ्तार किये गये हैं। मैं यह जरूर स्वीकार करूँगा कि इस प्रकारकी गिरफ्तारी ठीक थी। हर कांग्रेस जनको, हर कांग्रेस नेताको अपने गाँव और जिलेमें शान्ति कायम करनेके लिए अपने आपको जिम्मेदार मानना चाहिए; और चाहे हम अमुक दंगे में मौजूद रहे हों या न रहे हों, लेकिन सरकारको कहीं भी हुए ऐसे किसी भी दंगे के लिए हमें ही जिम्मेदार मानने दीजिए क्योंकि

  1. यहाँ संकेत शाहाबादमें सितम्बर-अक्तूबर, १९१७ में हुए उपद्रवोंकी ओर है। देखिए खण्ड १३ और १४।