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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साथ आपको भात खाना हो, उसमें भातको मिला दीजिए। क्या कुछ मिनट बाद आप उसे कोई स्वच्छ चीज मानेंगे ? क्या आप उसे छूना भी पसन्द करेंगे ? स्वास्थ्यकी दृष्टिसे उसे छूना ठीक नहीं है। मैं किसी दूसरेके साथ नहीं खा सकता, अपने बेटे के साथ भी नहीं खा सकता। अगर कोई कहे कि वह घृणावश अमुक व्यक्तिके साथ नहीं खायेगा तो मैं उसका विरोध करूँगा। आपको इस घृणा-भावसे छुटकारा पाना है।

अन्तर-जातीय विवाहके बारेमें आपका क्या खयाल है ?

इसका विरोध में आध्यात्मिक कारणोंसे करता हूँ। मान लीजिए, आपको अपनी पत्नीका चुनाव करोड़ों औरतोंमें से करना हो। उस हालत में अपनी इस वासनाका प्रयोग आप उतनी ही अधिक स्त्रियोंपर करेंगे। किन्तु, यदि आपके चुनावका दायरा सीमित हो, तो उसी हदतक आपकी वासनाका प्रयोग भी सीमित हो जाता है। इस तरह अपने लिए पत्नी चुननेका क्षेत्र सीमित करके आप आध्यात्मिक दृष्टिसे लाभान्वित होते हैं। अतः, इस चुनावको अपनी जातितक ही सीमित रखना अच्छा है।

मान लीजिए कि एक जातिका पुरुष किसी दूसरी जातिकी स्त्रीसे प्रेम करने लग जाता है और वह स्त्री भी उससे प्रेम करती है। उस हालत में क्या आप उनके विवाहके मार्ग में रुकावट बनेंगे ?

मैं रुकावट नहीं बनूंगा, लेकिन नहीं बनूंगा तो सिर्फ अहिंसा धर्मका खयाल करके ही नहीं बनूँगा। मान लीजिए मेरा बेटा मेरी बेटीसे शादी करना चाहता है। उस हालतमें मैं उनके मार्ग में रुकावट तो नहीं बनूंगा, लेकिन एक काम जरूर करूँगा उन्हें अपने घरमें स्थान नहीं दूंगा।

चूंकि मुलाकातका समय पूरा हो रहा था, अतः श्री माधवनने महात्माजीसे मन्दिरोंमें प्रवेश प्रश्नपर अपने विचारका अधिकृत विवरण देनेका अनुरोध किया। महात्माजीने तत्काल एक पूरे कागजपर अपने विचार लिखकर श्री माधवनको दे दिये। उसे पढ़नेके बाद श्री माधवनने कहा : "इसमें इस बातकी तो कोई चर्चा की ही नहीं गई है कि इस आन्दोलनमें कांग्रेसको क्या करना चाहिए।" इसपर पहले लिखे विवरणमें महात्माजीने इतना और जोड़ दिया :

यह पूछनेपर कि एजहवा तथा अन्य लोगोंके अधिकारोंके मामलेमें स्थानीय कांग्रेस कमेटीको मदद करनी चाहिए या नहीं, गांधीजीने जोर देकर कहा कि इसमें मदद करना उसका कर्त्तव्य है।

इसे पढ़ लेनेपर श्री माधवनने पूछा : "क्या इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कांग्रेस कमेटीको मन्दिरों में प्रवेशके सवालको अपने व्यावहारिक कार्यक्रमका एक अंग मानना चाहिए ?"

हाँ, उसमें यह बात बिल्कुल साफ कर दी गई है। उसमें "चाहिए" शब्दका प्रयोग हुआ है। श्री माधवनने अभिवादन करके विदा ली। {{left|[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ३०-९-१९२१