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८४. भाषण : तिन्नेवेलीमें

२३ सितम्बर, १९२१

. . . महात्मा गांधी सिर्फ घुटनों तक की एक लँगोटी पहने सभामें आये। . . .उन्होंने बहुत प्रभावोत्पादक भाषण दिया, जिसे श्री टी० आर० महादेव अय्यर तथा डा० राजन्ने तत्काल अनुवाद करके सुनाया।. . .

मित्रो,

आपने जो मानपत्र और तिलक स्वराज्य कोषके लिए थैली भेंट की, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। किन्तु उससे भी ज्यादा आभारी इसलिए हूँ कि आपने अपने उत्साहका कोई शोरगुल-भरा प्रदर्शन नहीं किया। ये प्रदर्शन यद्यपि आपके स्नेहके प्रतीक हैं और उनके पीछे कोई शरारतका मंशा नहीं होता, फिर भी मुझे कहना पड़ेगा कि इनसे मैं परेशान हो उठता हूँ। कुछ तो इस कारणसे कि ऐसे ही प्रदर्शन बार-बार देखनेको मिलते हैं और कुछ इस कारणसे कि मेरे स्वास्थ्यकी हालत नाजुक है, मुझमें इन शोरगुल-भरे प्रदर्शनोंको बर्दाश्त करनेका धीरज और क्षमता बिलकुल नहीं रह गई है। इनसे अगर मुझे खिलाफत तथा पंजाबके साथ किये गये अन्यायोंका निराकरण कराने में जरा भी मदद मिल सकती है तो मैं इस सबकी परवाह नहीं करता। लेकिन, मैं जानता हूँ कि अगले तीन महीनोंमें हमें जैसा जबरदस्त काम करना है उसके लिए यह शोरगुल अनावश्यक ही नहीं, बल्कि जिस उद्देश्यकी मुझे और आप सबको ऐसी लगन लगी हुई है उसके लिए यह अहितकर भी है। अगर हमें इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त करना है, खिलाफत तथा पंजाबके साथ किये गये अन्यायोंका निराकरण कराना हैं, और अली-बन्धुओंको जेलसे छुड़ाना है तो हमें अपना सब काम प्रभावकारी ढंगसे चुपचाप और संकल्पपूर्वक करना चाहिए। इसलिए मैं आपको तथा इस महान् सभाके आयोजकोंको भी इस बात के लिए हृदयसे बधाई देता हूँ कि यहाँ किसी तरहका शोरगुल नहीं हो रहा है। अगर सारे भारतमें सभाओं का आयोजन इस सभाकी तरह ही शान्तिपूर्ण और सुचारु ढंगसे होने लगे तो मुझे हमारा भविष्य सभी दृष्टियोंसे आशामय ही दिखाई देता है। हमने इस सभामें सोच-समझकर स्वेच्छा और समझदारीसे जो शान्ति बना रखी है, वह हमारे अहिंसा-धर्मके सर्वथा अनुरूप ही है। अली-बन्धुओंकी गिरफ्तारी के बाद भी भारत शान्त और निरुद्विग्न रहा है -- यह बहुत ही हर्ष, सन्तोष और आशाकी बात है। अगर उनकी गिरफ्तारीपर भारतके किसी हिस्सेमें किसी खास कामपर लगे लोगोंने हड़ताल की होती, अथवा उस हिस्सेमें या समस्त भारतमें व्यापक हड़ताल ही क्यों न हुई होती, तो अली-बन्धु जिस आदर और स्नेहके पात्र हैं, उसे देखते हुए उस हड़तालका कोई मूल्य नहीं होता। यह हमारा सौभाग्य है कि हमें अलीबन्धु-जैसे बहादुर, साहसी, आस्थावान्, शक्तिवान्, धर्मनिष्ठ तथा देश-प्रेमी नेता प्राप्त हैं। किन्तु हम अपने आपको इस सौभाग्यके उपयुक्त पात्र तो तभी साबित कर सकते