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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमारा यह भी मत है कि प्रत्येक भारतीय सैनिक और असैनिक कर्मचारीका कर्त्तव्य है कि वह अपनी नौकरीसे त्यागपत्र दे दे और अपनी जीविकाका कोई दूसरा सम्मानजनक साधन ढूंढ़ ले|

और इस लक्ष्यको ध्यान में रखकर हम सरकारी कर्मचारियोंको यह सुझाव देते हैं कि वे सूत कातना और कपड़ा बुनना सीख लें। इससे राष्ट्रीय हित साधनके साथ-साथ वे ईमानदारीसे और सम्मानजनक रूपसे अपनी जीविका कमा सकेंगे।

हम समस्त देशसे अनुरोध करते हैं कि वह विदेशी कपड़े के बहिष्कारका काम पूरा करे और सूत कातने और कपड़ा बुननेका काम हाथमें ले एवं इन साधनोंसे खद्दरके उत्पादन कार्यको प्रोत्साहन दे।

विदेशी कपड़ेका पूर्ण बहिष्कार करने और हाथसे सूत कातने और कपड़ा बुननेसे हर आदमी सरकारी नौकरी किये बिना अपनी जीविका कमा सकेगा और तब कांग्रेस, सैनिक और असैनिक कर्मचारियोंको नौकरी छोड़नेके लिए कह सकेगी और यहाँतक कि सामूहिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी आरम्भ कर सकेगी ?[१]

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७६३३) की फोटो-नकलसे।

१०६. एक ज्ञापन}

[ बम्बई
सायं ६.५०, ४ अक्तूबर, १९२१][२]

बम्बई सरकारकी १५ सितम्बर, १९२१ की विज्ञप्तिमें बताये कारणोंसे अलीबन्धुओं तथा अन्य लोगोंपर चलनेवाले मुकदमेको ध्यानमें रखते हुए हम, नीचे हस्ताक्षर करनेवाले लोग, अपनी-अपनी निजी हैसियतसे बोलते हुए कहना चाहते हैं कि हर व्यक्तिका यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह नागरिकों द्वारा सरकारके सैनिक अथवा असैनिक किसी भी विभाग के लिए, अपनी सेवाएँ अर्पित करने या उसकी सेवामें रहनेके औचित्य-अनौचित्य के बारेमें बिना किसी संयम संकोचके अपना विचार प्रकट करे।

हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले लोगोंके विचारसे यह बात किसी भी भारतीयकी राष्ट्रीय प्रतिष्ठाके खिलाफ है कि वह एक ऐसी शासन-प्रणालीके अधीन असैनिक और खासकर सैनिक सेवा करे जिस प्रणालीने भारतको आर्थिक, नैतिक तथा राजनीतिक दृष्टियोंसे पतन के गर्त में गिरा दिया है, जिसने सैनिकों तथा पुलिसका उपयोग राष्ट्रीय आकांक्षाओंका दमन करनेके लिए किया हो, जैसा कि रौलट अधिनियम के खिलाफ होनेवाले आन्दोलनके समय किया, और जिसने [ भारतीय ] सैनिकोंका उपयोग अरबों, मिस्त्रियों, तुर्कों और जिन दूसरे राष्ट्रोंने भारतका कुछ भी नहीं बिगाड़ा उन सबकी स्वतन्त्रताका अपहरण करने के लिए किया है।

  1. बादके दो अनुच्छेद साधन-सूत्रमें काट दिये गये हैं।
  2. शापनके मसविदेकी फोटो नकलके आधारपर।