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एक ज्ञापनका मसविदा

मद्रासमें गुजराती

मुझे जहाँ-जहाँ गुजराती दिखाई देते हैं वहाँ-वहाँ मैं यह देख रहा हूँ कि वे इस समय गुजरातकी कीर्ति बढ़ा रहे हैं। वे जहाँ रहते हैं वहाँ लोगोंमें अधिकसे-अधिक घुलते-मिलते हैं। उन्हें जितना धन देना चाहिए उतना धन देते हैं और यथाशक्ति असहयोगका प्रचार करते हैं। मैं दूसरे लोगोंसे पूछता हूँ तो वे भी उनके सम्बन्धमें अच्छी ही राय जाहिर करते हैं। गुजराती स्थानीय झगड़ोंसे अलग रहते हैं। इस प्रकार वे सेवाधर्मको ही प्रधानता देते हैं। मेरे ऊपर गुजरातियोंकी छाप ऐसी ही पड़ी है। दक्षिण आफ्रिका और पूर्व आफ्रिकासे भी गुजराती धन भेज रहे हैं और वहाँके आन्दोलनोंमें भी भाग ले रहे हैं। इन गुजरातियोंमें मैं गुजराती-भाषी भारतीयों और मुसलमानोंको भी गिन लेता हूँ, क्योंकि देखता हूँ कि गुजराती भाषी मेमन भी इस दिशा में कुछ-न-कुछ प्रयत्न करते रहते हैं। मैं जहाँ-कहीं इक्के-दुक्के पारसियोंको भी देखता हूँ वहाँ मुझे उनके प्रेमका परिचय मिलता है। मुझे भारतके सुदूर उत्तर-पूर्व में स्थित असममें भी यही देखनेको मिला है। वहाँ एक ही पारसी थे; किन्तु उन्होंने भी असहयोगमें अपनी सहानुभूति प्रकट करनेमें कोई कमी नहीं रखी।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २-१०-१९२१

१०५. एक ज्ञापनका मसविदा

४ अक्तूबर, १९२१

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले हम लोगोंका खयाल है कि बम्बई सरकारने तारीख. . . को अली बन्धुओं और दूसरे लोगोंके बारेमें जो विज्ञप्ति निकाली है उसमें ऐसे सिद्धान्त दिये हैं जो मतप्रकाशनकी समस्त स्वतन्त्रताके विरुद्ध हैं; और हम यह कहना चाहते हैं कि नागरिकोंके लिए सरकारकी सेवा करना; चाहे वह सैनिक विभाग में हो या असैनिक विभागमें, उचित है या नहीं, इस सम्बन्धमें बिना किसी प्रतिबन्धके अपना मत व्यक्त करना प्रत्येक व्यक्तिका सहज अधिकार है।

हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले लोग अपनी यह सम्मति प्रकट करते हैं कि जिस सरकारकी व्यवस्थाके अन्तर्गत भारतका आर्थिक, नैतिक और राजनैतिक पतन हुआ है और जिस सरकारने सैनिकों और पुलिसके सिपाहियोंका उपयोग राष्ट्रीय आकांक्षाओंको कुचलनेके लिए किया है, उदाहरणार्थ रौलट कानूनके विरुद्ध आन्दोलनके समय, और जिसने सैनिकों का उपयोग उन अरबों, मिस्त्रियों और तुर्कोंके विरुद्ध उनकी स्वतन्त्रताको कुचलनेके लिए किया है जिन्होंने भारतकी कोई हानि नहीं की है। सरकारी तंत्र में असैनिक अधिकारी और खास तौर से सैनिकके रूपमें सेवा करना, मुसलमान धार्मिक नेताओं द्वारा घोषित इस्लाम धर्मके विरुद्ध ही नहीं, बल्कि भारतीयोंके राष्ट्रीय स्वाभिमानके भी विरुद्ध है।