पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/३३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कृपालु संरक्षक बननेका पाप कभी नहीं करूँगा। लेकिन यह समझमें आनेपर कि उन्हें गरीब बनानेमें मेरा भी हाथ रहा है, मैं उन्हें अपनी जूठन और अपने शरीर परसे उतारा हुआ कपड़ा नहीं, बल्कि उनका उचित और गौरवपूर्ण स्थान दूंगा; मेरे पास खाने और पहननेको जो सबसे अच्छा है, वह दूंगा, और उनके काममें स्वयं भी शरीक हो जाऊँगा।

और यह भी सही नहीं है कि असहयोग और स्वदेशीकी योजनाके पीछे दूसरोंके वर्जनकी भावना है। मैंने किसी ऊँचे मंचपर चढ़कर कभी यह घोषणा नहीं की कि असहयोग, अहिंसा और स्वदेशीका सन्देश अखिल विश्वके लिए है -- इसका कारण मेरी विनयशीलता ही है। इसके सिवा, जिस भूमिपर यह सन्देश दिया गया है, उस भूमिपर अगर यह फलित नहीं होता है तो निश्चित है कि यह सन्देश बेकार है। इस समय तो भारतके पास, सिवा उसके पतन, गरीबी और कष्टके, दुनियाको देनेके लिए कुछ नहीं है। क्या हम दुनियामें उसके प्राचीन शास्त्रोंका प्रचार करें? उनके तो संस्करणपर-संस्करण प्रकाशित होकर पड़े हुए हैं, लेकिन यह दुनिया, जो अपने मत पर अन्धभक्ति रखनेवाली और पर-मतको सदा सन्देहकी दृष्टिसे देखनेवाली है, उनकी ओर ध्यान ही नहीं देती। कारण यह है कि हम, जो उन शास्त्रोंके विरासतदार और रक्षक हैं, उनके अनुसार आचरण ही नहीं करते। इसलिए दुनियाको कुछ देनेकी सोचनेसे पहले मैं स्वयं कुछ प्राप्त कर लूं, किसी लायक तो बन जाऊँ। हमारा असहयोग न अंग्रेजोंके खिलाफ है, न पश्चिमी दुनिया के खिलाफ। हमारा असहयोग तो उस प्रणालीके खिलाफ है जो अंग्रेजोंने स्थापित की है, हमारा असहयोग इस भौतिकवादी सभ्यता और उसके साथ जुड़े लोभ-लालच तथा कमजोरोंके शोषणकी प्रवृत्तिके खिलाफ है। हमारे असहयोगका मतलब है, हमारा लौटकर अपने घर आ जाना। हमारे असहयोगका मतलब है अंग्रेज शासकोंके साथ उनकी ही शर्तोंपर सहयोग करनेसे इनकार करना। हम उनसे कहते हैं, आप आइए, और हमारी शर्तोंपर हमसे सहयोग कीजिए। यह हम सबके लिए कल्याणकारी होगा, आपके लिए कल्याणकारी होगा और दुनियाके लिए भी। हमें अपने पैर दृढ़तासे अपनी मिट्टीपर जमाये रखने चाहिए। जो खुद डूब रहा हो, वह दूसरोंको क्या बचायेगा ? दूसरोंको बचानेकी सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए पहले हमें अपने-आपको बचानेका प्रयत्न करना चाहिए। भारतीय राष्ट्रवाद कोई वर्जनशील, आक्रामक या ध्वंसात्मक प्रवृत्ति नहीं है। यह स्वास्थ्यकर, धार्मिक और इसलिए मानवतावादी है। भारतको मानवताके लिए मर मिटनेकी सोचनेसे पहले स्वयं जीना सीखना चाहिए। जो चूहे असहाय अवस्थामें किसी बिल्लीके दाँतोंके बीच पड़े हुए हों, उनकी इस लाचारीके बलिदानका क्या मोल ?

कवि सुलभ प्रवृत्तिके अनुसार ही कविवर कलके लिए, सुन्दर भविष्यके लिए जी रहे हैं, और वे चाहते हैं कि हम भी कलके लिए ही जियें। वे हमारी चमत्कृत आँखोंके सामने एक सुन्दर चित्र प्रस्तुत करते हैं -- उषःकालमें पंछी अपने बसेरोंसे निकलकर आकाशमें ईश्वरका गुणगान करते हुए उड़े चले जा रहे हैं। वे भूल जाते हैं कि इन पंछियोंको उस रातसे पहलेके दिनमें पूरा आहार मिला था और जब ये प्रातःकाल आकाशमें उड़ चले तब इनके डैने काफी विश्राम पा चुके थे, और उनकी नसोंमें