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महान् प्रहरी

ऐसा सोच सकता हूँ कि वह मानव-जातिके लिए कोई स्थायी और नया आविष्कार कर सकता है, परन्तु उससे भी ज्यादा आसानीसे मैं इस सम्भावनाकी कल्पना कर सकता हूँ कि जिस व्यक्तिके पास अपनी राहको प्रकाशित करने और अपनी तोड़ेदार बन्दूकमें चिनगारी लगानेके लिए लोहेके एक टुकड़े और एक चकमक पत्थरके अलावा और कुछ नहीं है, वह ईश्वरका नित नवीन गुण-गान करते हुए इस दुःख-सन्तप्त धरित्रीको शान्ति और सद्भावनाका सन्देश दे सकता है। लोगोंसे चरखा अपनाने के लिए कहने का मतलब है श्रमकी गरिमा स्वीकार करनेको कहना।

मैं तो कहता हूँ कि चरखेको खोकर हमने अपना बायाँ फेफड़ा ही खो दिया। इसलिए हम आज [ अपनी श्री-समृद्धि] भयंकर क्षयसे पीड़ित हैं। चरखेको फिर से अपनानेसे इस भयंकर रोगकी बढ़ती रुक जायेगी। कुछ ऐसी चीजें हैं जो सभीको सर्वत्र करनी चाहिए। और कुछ ऐसी चीजें हैं जो सभीको कुछ खास क्षेत्रोंमें करनी चाहिए। चरखा एक ऐसी चीज है जिसकी शरण में कमसे-कम इस संक्रान्ति कालमें तो भारत के सभी लोगोंको जाना चाहिए और एक बहुत बड़ी संख्याको उसे सदा अपनाये रहना चाहिए।

चरखेको उसके गौरवपूर्ण स्थानसे विदेशी वस्त्रोंके प्रति हमारे आकर्षणने ही च्युत किया। इसलिए मैं विदेशी वस्त्र पहनना पाप मानता हूँ। यहाँ मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मैं अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्रमें बहुत ज्यादा या तनिक भी फर्क नहीं करता। जो अर्थ-व्यवस्था व्यक्ति या राष्ट्रकी नैतिकताको चोट पहुँचाती है, वह अनैतिक है और इसलिए पापपूर्ण है। इसलिए जो अर्थ-व्यवस्था एक देशको दूसरे देशको लूटनेकी छूट देती है वह अनैतिक है। जिनके श्रमका शोषण होता है, ऐसे मजदूरों द्वारा बनाई गई वस्तुओंको खरीदना या उनका उपयोग करना पाप है। अमेरिकाका गेहूँ खाना और अपने पड़ौसके अन्न विक्रेताको ग्राहकोंके अभावमें भूखों मरने देना पाप है। इसी तरह जब मैं जानता हूँ कि अगर मैंने पड़ौसके सूत कातनेवालों और बुनकरों द्वारा तैयार किया गया कपड़ा पहना होता तो मैं अपना बदन भी ढँकता और उन्हें भी अपनी रोटी कपड़ा कमानेकी सुविधा कर देता, तब वैसी हालत में रीजेंट स्ट्रीटके सुन्दर और नये फैशनके कपड़े खरीदना मेरे लिए पाप है। अपने इस पापकी प्रतीति होते ही मेरा यह कर्त्तव्य हो जाता है कि विदेशी वस्त्रोंको आगमें होमकर अपने-आपको पवित्र बना लूं, और भविष्यमें अपने पड़ोसियों द्वारा बुनी खुरदरी खादीसे ही सन्तोष करूँ। अगर यह मालूम हो कि मेरे पड़ोसी तो बहुत पहले इस धन्धेको छोड़ चुके हैं, इसलिए वे फिरसे चरखेको नहीं अपना सकते, तो उस हालत में मुझे स्वयं ही चरखा चलाना शुरू करके उसे लोकप्रिय बनाना चाहिए।

मैं कविवरसे निवेदन करना चाहता हूँ कि मैं उन्हें वहीं कपड़े जलाने को कहता हूँ जो उन्हींके हों और सचमुच उन्हींके हैं भी। कारण, अगर वे उन कपड़ोंको गरीबों और अध-नंगे लोगोंके मानते तब तो उन्होंने उन्हें कबका उन गरीबोंके सुपुर्द कर दिया होता। अपने विदेशी कपड़ेको जलाकर मैं अपनी लज्जाके कारणको जलाता हूँ। जो लोग नंगे हैं, निर्वस्त्र हैं, उन्हें जरूरत तो कामकी है। अगर मैं उन्हें काम न देकर कपड़े देता हूँ जिनकी उन्हें जरूरत नहीं है तो यह उनका अपमान है। मैं उनका