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१२७. बम्बई क्या करेगा ?

३१ जुलाईको, बम्बईमें मैंने विदेशी कपड़ेकी पहली होली जलाई थी। उतनी ही बड़ी दूसरी होली पिछले रविवारको जलाई गई। ३१ जुलाईको भी रविवार था।

बम्बईने ही अपनी उदारता दिखाकर भारतकी लाज रखी और तिलक स्मारक कोष पूरा किया। स्वदेशीकी नींव बम्बईने ही डाली। बम्बईमें ही चौपाटीपर सबसे पहले सत्याग्रहकी विशाल सभामें स्वदेशी और हिन्दुओं तथा मुसलमानोंकी मैत्रीका निश्चय किया गया।

बम्बईमें हिन्दू हैं, मुसलमान हैं और बम्बई पारसी वीरोंका केन्द्र है। बम्बईमें स्वभावके गम्भीर गुजराती हैं। बम्बईमें पहाड़ोंमें पले-पुसे वीर मराठे हैं। बम्बईमें मेमन, भाटिया, पारसी और सिन्धी व्यापारी वीर हैं। बम्बईके लोग साहसी हैं। वे एक घड़ीमें धन कमाते हैं और एक घड़ीमें ही उसे गँवा देते हैं और उसका उनको कोई खयाल भी नहीं होता।

अगर बम्बई निश्चय कर ले तो उसमें स्वराज्य लेनेकी शक्ति कुछ कम नहीं है।

स्वदेशी में स्वराज्य है, यह बात तो अब सर्वमान्य है।

स्वदेशी आन्दोलनमें सफलता प्राप्त करनेके लिए हमें व्यापारियों और स्त्रियोंकी सहायताकी आवश्यकता है।

स्वराज्य के आन्दोलनमें जितना रस बम्बईके व्यापारियोंने लिया है उतना भारतके दूसरे भागों के व्यापारियोंने नहीं लिया है। क्या वे अपने स्वार्थका त्याग करके सहायता देंगे ? यदि सोचें तो इसमें त्याग भी कुछ नहीं करना है, क्योंकि उन्होंने विदेशी मालसे ही लाभ कमाया है और उन्हें इस लाभको कमानेका कोई हक नहीं था। उससे तो देशको असीम हानि हुई है। भारतको विदेशी कपड़ेके व्यापारसे जितना नुकसान पहुँचा है उतना किसी दूसरी चीज़से नहीं पहुँचा। इसलिए यदि विदेशी कपड़े के व्यापारी अब समझ जायें तो वे पाप मुक्त हो सकते हैं, शुद्ध हो सकते हैं। क्या वे रुपयेका लालच छोड़ेंगे?

और उन्हें यह लालच क्यों नहीं छोड़ना चाहिए? जापानमें तभी जागृति हुई। जब जापानके धनिकोंने अपने धनका और उस धनसे प्राप्त प्रतिष्ठाका त्याग किया। हमें लड़ना तभी आ सकता है जब हम पहले त्याग करें। जो लोग लड़ते हैं वे पहले अपनी धन-सम्पत्तिका त्याग करते हैं। तभी वे लड़ना सीख पाते हैं। शस्त्र बल दिखाना हो अथवा आत्मबल, दोनोंके लिए ही पहले धनका त्याग करना होता है।

किन्तु इस आन्दोलनमें तो इतना त्याग भी नहीं करना है। जो काम विचारपूर्वक किया जाता है उसमें त्याग सदा कमसे कम करना होता है। यदि व्यापारी ज्ञानपूर्वक विदेशी कपड़ेका व्यापार छोड़ें तो वे खादीका व्यापार आरम्भ कर सकते हैं और ईमानदारीसे अपनी आजीविका कमा सकते हैं। आखिर किसीको इतनी बड़ी पूंजीका व्यापार करना ही है जितनी पूँजीसे सालमें ६० करोड़ रुपये का मुनाफा मिल जाये।