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बम्बई क्या करेगा ?

६० करोड़ रुपयेका मुनाफा कमानेके लिए कितने व्यापारियों और कितने सहायकोंकी आवश्यकता होगी ?

किन्तु एक बातकी जरूरत अवश्य है। ये व्यापारी विचारशील होने चाहिए। जो आलसी व्यापारी दूसरोंकी नकल ही करते हैं, सट्टा खेलते हैं, और बापसे मिले धन्धे से, बिना किसी प्रयत्नके, धन कमाते हैं वे इसमें कमाई नहीं कर सकते। इसमें तो वे ही कमाई कर सकते हैं जो अपना आलस छोड़ें। आलसी आदमी कभी वीर नहीं हो सकता। आलसीको कभी स्वराज्य नहीं मिल सकता। स्वराज्य और सुस्ती दोनोंमें बैर है।

बम्बईमें जैसे व्यापारी जागृत हैं वैसे ही स्त्रियाँ भी। बम्बईकी स्त्रियोंके बराबर प्रगतिशील स्त्रियाँ दूसरी जगह कहाँ हैं? और स्त्रियोंकी सहायताके बिना स्वदेशी आन्दोलन नहीं चल सकता, इसलिए उनकी सहायताके बिना स्वराज्य नहीं मिल सकता। हम स्त्रियोंकी सहायता शोभा बढ़ाने के लिए नहीं माँगते, हम स्त्रियोंको भाषण देनेके लिए नहीं बुलाते। भारत आज स्त्रियोंसे यही भिक्षा माँगता है कि वे शुद्ध रहें, सादगी बरतें और परिश्रम करें। स्त्रियोंमें ज्ञान और देश-भक्ति होनी चाहिए। यदि स्त्रियाँ विदेशी कपड़ेका मोह न छोड़ें और भड़कीले रंगकी विदेशी साड़ियों, साटनों और मलमलके लिए जिद करें तो बेचारे पुरुष क्या करेंगे ?

क्या स्त्रियोंसे बलात् स्वदेशी व्रतका पालन कराया जा सकता है ? यदि स्त्रियोंपर बल-प्रयोग करके उनसे स्वदेशी व्रतका पालन कराना हो तो मैं चाहता हूँ कि वे विदेशी कपड़ा ही पहनें। स्वराज्य स्त्रियोंके जागरण और स्वेच्छापूर्वक किये हुए त्यागपर निर्भर है। यदि स्त्रियाँ विदेशी कपड़ेको छोड़ेंगी तो वे धर्म समझकर ही छोड़ेंगी। यदि मुसलमान बहनें खिलाफतका रहस्य समझेंगी, हिन्दू बहनें गो-रक्षाके प्रश्नको समझेंगी और सभी बहनें अपने गरीब पड़ोसियोंकी गरीबी दूर करना अपना धर्म मानेंगी अर्थात् यदि भारतकी स्त्रियाँ विदेशी कपड़ा पहनना अपना अधर्म समझेंगी, खादी पहनना और नित्य चरखा चलाना धर्म मानेंगी तो देशमें स्वदेशीका प्रचार आँधीकी तरह तेजीसे होगा। इस कामको बम्बईकी बहनें कर सकती हैं।

इसी तरह बम्बईमें पुरुषोंको भी अपना बारीक कपड़ेका शोक छोड़ना चाहिए। उन्हें चरखा हाथमें लेना चाहिए। जब वे ऐसा करेंगे तभी स्वदेशी आन्दोलन आगे बढ़ेगा।

यदि समस्त भारत स्वदेशी आन्दोलनको भली-भाँति समझ ले तो हम सविनय अवज्ञा या अहिंसात्मक विद्रोह किये बिना ही स्वराज्य ले सकते हैं, ऐसा मेरा विश्वास है। किन्तु सम्भव है कि ऐसा सुयोग न मिले और भारतके हजारों लोगोंको जेल जाना पड़े और अपने प्राण भी देने पड़ें। यदि केवल किसी एक प्रान्तमें स्वदेशीका पूरा प्रचार हो जाये तो उसका असर इतना नहीं हो सकता कि उससे स्वराज्यकी स्थापना हो जाये। परन्तु यदि एक प्रान्त या एक जिला इसके लिए तैयार हो जाये तो उसे विद्रोह करनेका अधिकार क्यों न मिलेगा? और उसकी शक्तिसे भारत स्वतन्त्र क्यों नहीं होगा ? मेरा तो विश्वास है कि उसकी शक्तिसे सारा भारत स्वतन्त्र हो सकता है। क्या बम्बई इस तरह पहल करनेके लिए तैयार हो सकता है?