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३. बिहार-निवासियोंके प्रति

तेजपुर
असम
भाद्रपद कृष्ण ४ [ २२ अगस्त, १९२१]

[१]

बिहारकी श्रद्धा और भक्ति अवर्णनीय है। गो-माताके प्रति आपके प्रेमको मैं अच्छी तरह जानता हूँ। आप भक्तशिरोमणि तुलसीदासके पुजारी हैं। आप दयाधर्मके पालक हैं। गो-माताको बचानेका सुवर्ण-मार्ग एक ही है। आप मुसलमान भाइयोंकी खिलाफत-रूपी गाय को बचाने में सहायता करें। मुसलमान भाई प्रेमके वश होकर गायको बचा सकते हैं। हमारा धर्म यह नहीं सिखाता कि हम एक प्राणीको बचाने के लिए मनुष्यकी जान लें। जिसको हम बचाना चाहते हैं उसके लिए हम अपना ही प्राण दें। इसीको हमारा धर्म तपश्चर्या कहता है। तपश्चर्यासे ही हम धर्मका पालन कर सकते हैं। तपश्चर्या दयामूलक है, और दयामें ही धर्म है।

जबतक हम स्वयं पापरहित नहीं हो चुकते तबतक हम दूसरोंसे कैसे कुछ कह सकते हैं? क्या हमारे ही हाथोंसे गो-हत्या नहीं होती ? हम गो-माताके वंशके प्रति कैसा बर्ताव करते हैं ? बैलोंपर हम कितना बोझ लादते हैं ? बैलोंको तो ठीक, पर क्या हम गायको भी पूरा खाना देते हैं ? गायके बछड़े के लिए हम कितना दूध रखते हैं ? गायको बेचनेवाले लोग कौन हैं ? थोड़े पैसेके लिए जो हिन्दू गायको बेचते हैं उनसे हम क्या कहते हैं ? उन्हें रोकने के लिए क्या करते हैं?

अंग्रेज सिपाहियोंके लिए हमेशा गायें काटी जाती हैं। इसके लिए हमने क्या किया है? इन सब बातोंको समझते हुए भी हम क्यों अपने मुसलमान भाईपर ही, जो अपना धर्म समझकर गो-कुशी करता है, क्रोध करें ? कमसे कम हमें अपने हाथ तो साफ कर डालने चाहिए। ईश्वरका बड़ा अनुग्रह है कि हमारे मुसलमान भाइयोंने बकर ईदके दिन बड़ी शान्ति रखी, हमारा लिहाज किया और जहाँतक हो सका उन्होंने गो-कुशी नहीं की। इसलिए हम उनके एहसानमंद हुए हैं।

लेकिन भविष्य में भी ऐसा ही हो, इसका खयाल रखना आवश्यक है। इसलिए हम बकरे इत्यादिका मांस छोड़ दें। ऐसा करनेसे मांसका भाव गिरेगा और गायकी कीमतें बढ़ेंगी। गायका बेचना-खरीदना ही हमें असम्भव कर देना चाहिए। यह सब कार्य हम तभी कर सकेंगे जब हम अपने प्रत्येक कार्यमें विवेक, दया, बुद्धि और त्यागका प्रयोग करेंगे। आप लोगों में धर्मके प्रति बड़ी श्रद्धा है। जिस देशमें जनक, बुद्ध और महावीरने जन्म लिया है ऐसे पवित्र स्थानमें रहकर आप धीरज और धर्मको साथ रखते हुए

  1. गांधीजी इस दिन तेजपुरमें थे