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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

हाथका ही सूत बरतिए। उन्होंने यह बात मंजूर की और कहा कि काम रुक जानेपर ही वे मिलका सूत काममें लायेंगे। आजतक तो वे विदेशी सूतको बरतते जा रहे थे, पर खुद उन्होंने ही यह कहा कि हमारे बाप-दादे तो सिर्फ हाथका ही सूत इस्तेमाल करते थे। अब यदि इन जुलाहोंको हाथका ही कता सूत दिया जायेगा तो ये जरूर उसीको काममें लेंगे। पर यदि इसके लिए उत्साही कार्यकताओंका अभाव रहा तो वे, हाथका सूत बरतना स्वीकार कर चुकनेपर भी, जरूर ही विदेशी सूतको काममें लेंगे।अब हमारा काम यह है कि हम जुलाहे, पिंजारे, धुनिया, बढ़ई, लुहार इत्यादिको देशके काममें दिलचस्पी लेनेके लिए प्रवृत्त करें। मैं आशा करता हूँ कि राष्ट्रीय सभा कार्यकर्त्ता प्रत्येक गाँवमें जा-जाकर इन लोगोंसे मिलेंगे, उन्हें सभासद बनायेंगे और उनसे देशकी सेवा लेंगे। अपना काम वे लोग मजेमें करते रहें और कमायें, पर देशके कार्यको पहला स्थान दें और उसके लिए सामान्यसे कुछ कम मेहनताना लें। बस, हमें उनकी इतनी ही सेवापरं सन्तोष हो सकता है।

महायज्ञ

विदेशी कपड़ेका त्याग हमारा एक महायज्ञ है। इसमें हमें पूरी तरह सफलता मिलना ही स्वराज्य है। काम बड़ा है लेकिन हमें यह भय रखनेका कोई कारण नहीं कि यह एक माह में कैसे हो जायेगा। चिन्तित और भयभीत मनुष्य विमूढ़ हो जाता है, उसकी आँखोंके सामने अन्धेरा छा जाता है और उसे मार्ग नहीं दिखाई देता। यदि हम जरा-भर सोचें तो मालूम हो जाये कि स्वराज्य तो बड़ा आसान है, क्योंकि यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। इसलिए यह निश्चय रखकर कि स्वदेशी मुश्किल नहीं हो सकती, हमें काममें जुट जाना चाहिए। कार्यपरायण होनेके लिए हमें निश्चयी और उद्योगी बनना चाहिए। ज्यों-ज्यों मैं भ्रमण करता हूँ त्यों-त्यों मुझे तो यह अनुभव होता जाता है कि इसका आसानसे-आसान उपाय यही है कि हम अपनी जरूरतका कपड़ा घर ही में तैयार करा लें। एक करोड़ आदमियोंको एक जगह इकट्ठा करके उनसे काम करवानेकी बनिस्बत तो यह कहीं ज्यादा आसान है कि हम लोगोंको यह सिखा दें कि वे अपने ही गाँवोंमें रहकर और अपने ही घरोमें बैठकर कातने और बुननेकी क्रिया किस तरह कर सकते हैं। जैसा श्री अमुभाईने बताया है, बहुत जल्दी करनेपर भी मिलोंके द्वारा जिस कामके लिए हमें कमसे कम २५ वर्ष चाहिए, वही काम यदि हम समझ जायें तो घर बैठे २५ दिनमें कर सकते हैं। परन्तु जिस तरह नया अन्न पकानेवाला पहले अपने बरतन साफ कर डालता है उसी तरह हमें पहले विदेशी कपड़े-रूपी मैलको धो डालना चाहिए। उसके बिना हमारा आलस्य दूर नहीं हो सकता। जो आदमी एक बार लँगड़ा हो जाता है वह अच्छा हो जानेपर भी जिस प्रकार लकड़ीका सहारा छोड़ते हुए डरता है और गिर जानेके भयसे लँगड़ाते हुए ही चलता है उसी प्रकार जबतक हम विदेशी कपड़े के सहारे चलते रहेंगे तबतक हमारे पाँवोंमें बल नहीं आ सकता।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २१-८-१९२१